शुल्क संघर्ष बढ़ने के बीच भारत और जापान ने अपने विशेष रणनीतिक एवं विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को और प्रगाढ़ करने के वास्ते अगले दस वर्षों के लिए साझेदारी का एक नया खाका तैयार किया है। इसमें रक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छ ऊर्जा, दूरसंचार, दवा, महत्त्वपूर्ण खनिज, उभरती प्रौद्योगिकी और आर्थिक सुरक्षा ढांचा शामिल हैं। इसके तहत कई द्विपक्षीय समझौते हुए हैं, जिनमें न केवल साझा हित निहित हैं, बल्कि वैश्विक कारोबार में भी दोनों देशों की साख मजबूत होगी।

खासकर, अमेरिका की ओर से भारत पर लगाए गए पचास फीसद शुल्क से निपटने के उपायों की तलाश के बीच जापान से यह साझेदारी और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है। भारत व्यापार के वैकल्पिक रास्ते खोजने में जुटा है और जापान के साथ समझौतों को इसी कड़ी का एक हिस्सा माना जा रहा है। अमेरिका की शुल्क नीति से जापान भी अछूता नहीं है और ऐसे में वह भी भारत की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है।

जापान ने भारत में एक दशक के भीतर करीब 60,000 करोड़ रुपए के निवेश का बनाया लक्ष्य

अमेरिकी शुल्क को निष्प्रभावी करने की कोशिशों के तहत भारत ने चालीस देशों के साथ व्यापारिक संवाद का अभियान शुरू किया है। जापान भी उनमें से एक है। विभिन्न समझौतों के तहत जापान ने भारत में एक दशक के भीतर दस हजार अरब येन (करीब 60,000 करोड़ रुपए) के निवेश का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा दोनों देशों के बीच आपसी कामगारों को एक-दूसरे के यहां आसानी से आने-जाने एवं काम करने का मौका देने को लेकर भी एक कार्ययोजना बनी है। माना जा रहा है कि इससे पांच लाख भारतीय प्रशिक्षित कामगारों के जापान जाने का रास्ता खुलने की उम्मीद है।

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एक समझौता भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और जापान एअरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजंसी के बीच चंद्रमा के लिए संयुक्त अन्वेषण मिशन में सहयोग को लेकर हुआ है। दरअसल, भारत-जापान की साझेदारी न केवल दोनों देशों के लिए, बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। मजबूत लोकतंत्र एक बेहतर दुनिया को आकार देने में अहम भूमिका निभाते हैं।

संभावनाओं को तलाशना जरूरी

इसमें दोराय नहीं कि जापानी तकनीक और भारतीय प्रतिभा का संयोजन अंतरराष्ट्रीय पटल पर एक नए आयाम को आकार दे सकता है। रक्षा उद्योग और नवाचार के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग परस्पर आत्मनिर्भरता के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। दोनों देशों ने पेरिस समझौते के तहत कार्बन क्रेडिट व्यापार पर एक साथ काम करने के लिए भी समझौता किया है। इस कदम से भारत को अपने जलवायु लक्ष्यों के लिए धनराशि और प्रौद्योगिकी हासिल करने में मदद मिल सकती है। जापान के साथ व्यापार, नवोन्मेष और उद्यमिता आदि क्षेत्रों में सहयोग की अपार संभावनाएं हैं। नवउद्यम, प्रौद्योगिकी और कृत्रिम मेधा जैसे भविष्योन्मुखी क्षेत्र भी परस्पर लाभकारी हो सकते हैं।

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इस तरह की संभावनाओं को तलाशना इसलिए भी जरूरी है, ताकि अमेरिकी शुल्क नीति जैसे और कोई दबाव भविष्य में भारत पर असर न डाल सकें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब चीन की यात्रा पर हैं और उम्मीद है कि वहां भी द्विपक्षीय व्यापार को लेकर सार्थक बातचीत होगी। वैसे तो भारत-चीन के रिश्ते परंपरागत रूप से ज्यादा अच्छे नहीं रहे हैं, लेकिन अमेरिकी शुल्क के मुद्दे पर दोनों देश एक मंच पर आ गए हैं और इस मसले पर रूस भी भारत के साथ है। माना जा रहा है कि इन तीनों आर्थिक शक्तियों का आपसी संवाद वैश्विक उथल-पुथल के बीच नए समीकरणों को आकार दे सकता है।