अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच फोन पर हुई बातचीत से द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की उम्मीद बढ़ी है। अमेरिका की ओर से भारत पर पचास फीसद शुल्क लगाने से बने अनिश्चितता के माहौल में इस बातचीत को कई मायनों में महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। दोनों नेताओं ने भारत-अमेरिका एवं वैश्विक साझेदारी को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए प्रतिबद्धता जताई है।

इससे उस संभावना को भी बल मिला है कि आने वाले समय में शुल्क के मसले को सुलझाने के लिए सकारात्मक पहल की जा सकती है, जिससे द्विपक्षीय संबंधों में नई ऊर्जा का प्रवाह होगा। क्योंकि, दोनों राष्ट्राध्यक्षों की बातचीत से पहले भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता का नया दौर भी शुरू हो गया है, जो अमेरिकी शुल्क की घोषणा के बाद से थम गया था। यानी दोनों देशों के बीच रिश्तों पर जमी आशंकाओं और अविश्वास की बर्फ अब पिघलने लगी है।

ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी को फोन कर कई मसलों पर अपनी राय रखी और द्विपक्षीय साझेदारी को मजबूत करने पर जोर दिया। यही नहीं, उन्होंने प्रधानमंत्री के कार्यों की सराहना भी की और यूक्रेन युद्ध समाप्त करने के प्रयासों में सहयोग के लिए उन्हें धन्यवाद दिया। अमेरिका की ओर से भारत पर पचास फीसद शुल्क लगाए जाने के बाद से ट्रंप ने पहली बार प्रधानमंत्री मोदी को फोन कर उनसे बातचीत की है।

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इसे इसलिए भी अहम माना जा रहा है, क्योंकि यह बातचीत दोनों नेताओं द्वारा सोशल मीडिया पर संदेशों के आदान-प्रदान के कुछ दिनों बाद हुई है और इससे संबंधों को फिर से बेहतर बनाने के संकेत मिलते हैं। ट्रंप ने पहले भारत से अमेरिका को निर्यात की जानी वाली वस्तुओं पर पच्चीस फीसद शुल्क लगाया और फिर रूस से कच्चा तेल खरीदने पर जुर्माने के तौर पर पच्चीस फीसद अतिरिक्त शुल्क लगाने का एलान कर दिया। इससे भारत और अमेरिका के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए थे। भारत ने अमेरिका के इस फैसले को अनुचित और अविवेकपूर्ण करार दिया था।

पिछले कुछ दिनों से अमेरिकी राष्ट्रपति के सलाहकारों की ओर से भारत को लेकर जिस तरह के बयान आ रहे थे, उससे साफ नजर आ रहा था कि यह सिर्फ दबाव बनाने की रणनीति है। मगर, भारत की ओर से पहले ही स्पष्ट कर दिया गया है कि राष्ट्रहित से किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा। फिर चाहे बात शुल्क की हो या व्यापार समझौते में अमेरिकी शर्तों की। विदेशी मामलों के जानकारों का मानना है कि अमेरिका को लग रहा था कि उसकी शुल्क नीति से भारत दबाव में आ जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

इस बीच, पिछले दिनों चीन में हुए शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में भारत, रूस और चीन के राष्ट्राध्यक्षों का एक मंच पर आना भी अमेरिका के लिए बड़ा कूटनीतिक संदेश था। इसके बाद ट्रंप का वह बयान भी चर्चा में रहा, जिसमें उन्होंने कहा था कि ऐसा लगता है कि हमने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया है। जाहिर है, अमेरिका विश्व में भारत की बढ़ती साख और अहमियत को ज्यादा दिन तक नजरअंदाज नहीं कर सकता और यही वजह है कि भारत से संबंधों को लेकर अब उसके रुख में नरमी देखी जा रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि बातचीत को जो सिलसिला शुरू हुआ है, वह आगे भी जारी रहेगा और साझा हितों को साधने की कोशिश की जाएगी।