भातीय समाज में इतनी विविधता और कई मायनों में जटिलता है कि उसमें अक्सर टकराव जैसे हालात बन जाते हैं। मगर सरकार बिगड़े हालात को संभालने, शांति कायम करने का हर प्रयास करती है। कभी ऐसा हो सकता है कि कहीं स्थितियां इतनी खराब हो जाएं कि उन्हें ठीक करने में वक्त लगे। भारत सरकार अपनी जवाबदेही को समझती है।

अपने संप्रभु क्षेत्र में अराजकता पर काबू पाने और लोगों के अधिकार को सुनिश्चित करने की कोशिश करती है। मगर कुछ खास मामलों को आधार बना कर अगर किसी अन्य देश का कोई समूह मानवाधिकार हनन के लिए भारत को कठघरे में खड़ा करता है, तो इसे उचित नहीं कहा जा सकता।गौरतलब है कि अमेरिकी विदेश विभाग की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में मणिपुर सहित अन्य इलाकों में मानवाधिकार हनन के मामले बढ़े हैं।

कुछ गिने-चुने मामलों को आधार बना कर किसी देश की मंशा पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। वह भी तब, जब भारत सरकार हिंसा से प्रभावित तबकों की सुरक्षा के लिए हर जरूरी कदम उठाती है। इस तरह नाहक दखलअंदाजी की वजह से अगर भारत की छवि पर असर पड़ता है तो उसकी भरपाई कौन करेगा? यह बेवजह नहीं है कि गुरुवार को भारत के विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी रिपोर्ट को ‘बेहद पक्षपातपूर्ण’ करार दिया और कहा कि इसके जरिए देश की नकारात्मक छवि पेश की जा रही है और यह भारत के प्रति खराब समझ को दर्शाता है।

विचित्र है कि दुनिया भर में इस तरह की आवाजें उठती रही हैं कि अमेरिकी नीतियों की वजह से कई देशों में मानवाधिकारों को काफी नुकसान पहुंचा है। मगर आए दिन किसी अमेरिकी समूह की ओर से मानवाधिकारों का सवाल उठा कर विकासशील देशों को कठघरे में खड़ा किया जाता है। जहां तक भारत का सवाल है, कुछ जटिल स्थितियां पैदा होती हैं, तो उन पर काबू पाने और आम लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार बातचीत सहित अन्य जरूरी तौर-तरीके अपना कर समस्या का समाधान करने का प्रयास करती है। भारत अपनी मुश्किलों को दूर करने में सक्षम है और यहां लोकतंत्र की जड़ें इसीलिए गहरी हैं।