Unnao Case: कानून का उद्देश्य केवल अपराध को परिभाषित करना नहीं होता, बल्कि आमजन में यह विश्वास पैदा करना भी होता है कि न्याय सबके लिए समान है। जब यह विश्वास डगमगाने लगता है, तो व्यवस्था के विभिन्न पक्षों में से किसी एक की सजगता भी उम्मीद और राहत की राह दिखाने के लिए काफी होती है।
उन्नाव प्रकरण में भी कुछ ऐसा ही हुआ, जब सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद की सजा को निलंबित करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी। इसी के साथ यह भी स्पष्ट हो गया कि फिलहाल जेल से उसकी रिहाई नहीं हो पाएगी। शीर्ष अदालत का यह आदेश इसलिए अहम है, क्योंकि पीड़िता ने सेंगर की रिहाई पर अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर खतरे की आशंका जताई थी।
यह मामला कितना गंभीर था कि इसे इस बात से समझा जा सकता है कि शीर्ष अदालत के आदेश पर ही इसे उत्तर प्रदेश की निचली अदालत से दिल्ली स्थानांतरित किया गया था। गौरतलब है कि उन्नाव प्रकरण की पीड़िता और उसके परिवार ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के बाद सड़क पर धरना शुरू कर दिया था, लेकिन पुलिस ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी। इसके बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) ने उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी।
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शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि इस मामले में कानून से जुड़े महत्त्वपूर्ण प्रश्न सामने आए हैं, जिन पर विचार किया जाना आवश्यक है। यानी विशेष परिस्थितियों के मद्देनजर उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाई गई। इस आदेश से निश्चित तौर पर पीड़िता के पक्ष में न्याय की उम्मीद जगी है। इस मामले में सीबीआइ की भूमिका भी अहम रही। उसकी पहलकदमी और मजबूत दलीलों ने कुलदीप सेंगर की किसी भी संभावित रिहाई के रास्ते फिलहाल बंद कर दिए हैं।
भाजपा से निष्कासित सेंगर को पाक्सो के तहत दोषी ठहराया गया था। जब यह घटना हुई, उस समय वह विधायक था और आज भी इलाके में उसका खासा प्रभाव देखा जाता है। यही वजह है कि पीड़िता और उनके परिवार में अब भी भय का माहौल है।
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