परिचय के नाम पर रैगिंग के दौरान प्रताड़ित करने का चलन अगर सख्त पाबंदी के बावजूद आज भी कायम है तो यह इस प्रथा पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए उठाए गए कदमों पर सवालिया निशान है। गौरतलब है कि रैगिंग का विरोध करने पर नोएडा के एक निजी विश्वविद्यालय के छात्रावास में कनिष्ठ विद्यार्थियों की पिटाई की गई। विचित्र है कि यह मामला एक महीने तब तक दबा रहा, जब तक कि एक पीड़ित छात्र ने थाने में शिकायत नहीं दर्ज कराई। उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के विरुद्ध सख्त नियमों और अदालतों के साफ दिशा-निर्देशों के बावजूद नए विद्यार्थियों को प्रताड़ित करने या उनके खिलाफ हिंसा की खबरें अक्सर आती रहती हैं।
दमन की कुंठित मानसिकता से ग्रस्त हैं आरोपी छात्र
कई बार ऐसा लगता है कि सख्त नियम-कायदे के बावजूद रैगिंग करने वाले युवाओं के भीतर कानून का भी न कोई डर है, न उन्हें अपने भविष्य की कोई चिंता है। निचली कक्षाओं के विद्यार्थियों पर रौब जमाना या किसी को प्रताड़ित करना यह बताता है कि कुछ युवाओं में दमन की कुंठित मानसिकता काम करती रहती है।
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किसी उच्च शिक्षण संस्थान में दाखिला लेकर कालेज आने वाले विद्यार्थी को जब उनके वरिष्ठ छात्र शुरुआती दौर में ही शारीरिक और मानसिक पीड़ा पहुंचाने के लिए अभद्र व्यवहार करते हैं, तो उसकी स्मृति नवोदित विद्यार्थी के मन-मस्तिष्क में अंकित हो जा सकती है। वह वर्षों इससे उबर नहीं पाता। शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों के लिए स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण की अपेक्षा की जाती है। इस संदर्भ में रैगिंग के खिलाफ सख्त नियम-कायदे तय किए गए हैं।
शीर्ष न्यायालय कई साल पहले सभी शिक्षण संस्थानों में रैगिंग विरोधी कानून सख्ती से लागू करने का आदेश दे चुका है। दोषी छात्रों को तीन साल जेल और जुर्माने का प्रावधान है। नियमों का पालन न करने पर संस्थानों की मान्यता रद्द करने का भी निर्देश है। फिर भी रैगिंग के बहाने आज भी दूसरों को प्रताड़ित करने और उपहास उड़ाने की प्रवृत्ति खत्म नहीं हुई है। ध्यान रखने की जरूरत है कि रैगिंग का शिकार विद्यार्थी प्रताड़ना और अपमान को भूल नहीं पाता। ऐसी घटनाओं के बाद कुछ पीड़ितों ने खुदकुशी भी कर ली। निस्संदेह ऐसे मामले न केवल मानवाधिकारों का हनन हैं, बल्कि गरिमा के विरुद्ध भी हैं।