आखिरकार अमेरिका ने यूक्रेन को दी जाने वाली सैन्य सहायता पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। हालांकि इसके पीछे तर्क दिया गया है कि रोक अस्थायी है और यह समीक्षा करने के लिए लगाई गई है कि इससे रूस-यूक्रेन संघर्ष समाप्त हो पाएगा या नहीं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शुरू से दावा करते आ रहे हैं कि वे इस युद्ध को रुकवा कर रहेंगे। इसके लिए उन्होंने यूक्रेन पर नकेल कसने का रास्ता अख्तियार किया। यूक्रेन को दी जाने वाली सैन्य मदद रोकने की मंशा भी जाहिर कर दी थी।
यहां तक कि यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से कह दिया कि इस युद्ध में अमेरिका ने उन्हें जितना धन दिया है, वे उसकी वसूली करेंगे। इसके लिए यूक्रेन में खनिज निकालने पर समझौते का प्रस्ताव रखा, जिस पर हस्ताक्षर के लिए जेलेंस्की वाइट हाउस पहुंचे थे। मगर दोनों नेताओं के बीच बातचीत तल्ख बहस में बदल गई और सारी स्थिति पलटती नजर आने लगी। उसके बाद अमेरिका का यह कदम सामने आया है। स्वाभाविक ही, अब यूक्रेन के लिए रूस का सामना करना आसान नहीं होगा। यूक्रेन को सबसे अधिक धन और अत्याधुनिक हथियार अमेरिका से मिल रहे थे। उसी पर रोक लग गई है।
यूरोपीय देशों की भी हैं अपनी सीमाएं
हालांकि ट्रंप के साथ जेलेंस्की की बहस के बाद यूरोपीय देश एकजुट होने लगे। उन्होंने सीधे तौर पर अमेरिका की निंदा नहीं की, पर यूक्रेन के साथ खड़े रहने का भरोसा दिलाया। मगर यूरोपीय देशों की भी अपनी सीमाएं हैं। उनकी मदद से यूक्रेन के लिए रूस का मुकाबला करना संभव नहीं होगा। यूरोपीय देश खुद आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं, इसलिए वे यूक्रेन की कितनी आर्थिक मदद कर पाएंगे, कहना मुश्किल है। अभी तक वे जो आर्थिक मदद देते आ रहे हैं, वह कुल मिला कर अमेरिकी मदद की तुलना में आधे से भी कम है।
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फिर, यूरोपीय देशों के पास ऐसे अत्याधुनिक हथियार नहीं हैं, जैसे अमेरिका के पास हैं, जो रूस का मुकाबला कर सकें। जो हथियार उनके पास हैं भी, उनमें से ज्यादातर के संचालन की तकनीक अमेरिका की उपलब्ध कराई हुई है। इस तरह अमेरिका उन्हें नियंत्रित कर सकता है। पर, असल चिंता की बात यह होगी कि यूरोपीय देश अमेरिका के खिलाफ कब तक खड़े रह सकते हैं। इसलिए यूक्रेन पर अमेरिका की शर्तें मानने का दबाव बढ़ गया है। पर डोनाल्ड ट्रंप के लिए भी अपने इस कदम पर देर तक कायम रह पाना शायद संभव न हो, क्योंकि इसके खिलाफ अमेरिका में विरोध के स्वर उभरने लगे हैं।
लोकतंत्र और मानवाधिकारों की रक्षा की दुहाई देता रहा है अमेरिका
अमेरिका सदा से लोकतंत्र और मानवाधिकारों की रक्षा की दुहाई देता रहा है। इसके लिए वह कई देशों में अपने सैनिक भी उतारता रहा है। मगर ट्रंप ने इसके ठीक उलट कदम उठाया है। यह छिपी बात नहीं है कि यूक्रेन अपनी आजादी की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहा है। रूस अपनी जिद के आगे उसे घुटने टेकने पर मजबूर करना चाहता है।
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उसने खुल कर मानवाधिकारों का हनन किया है। ऐसे में ट्रंप ने अगर रूस से हाथ मिला लिया है और यूक्रेन के साथ लगभग वही व्यवहार कर रहे हैं, जो रूस करता आ रहा है, तो अमेरिकी नागरिक इस कदम को उचित नहीं ठहरा सकते। वैसे ही वहां ट्रंप के अनेक फैसलों को लेकर नाराजगी बढ़ती जा रही है। इसलिए रूस-यूक्रेन के बीच शांति समझौते के तरीके पर शायद उन्हें पुनर्विचार करना पड़े।