पहले एक सुविधा और अब जरूरत के तौर पर मोबाइल फोन ज्यादातर लोगों के पास है। इसके तमाम फायदे भी हुए हैं। लेकिन इसके समांतर एक बड़ी समस्या यह खड़ी हुई कि व्यक्ति के निजी मोबाइल पर ऐसे संदेश और फोन काल भी आने लगे, जिससे उसका कोई वास्ता नहीं होता। ऐसे काल या संदेश कई बार लोगों को परेशान कर देते हैं और उनके भीतर झल्लाहट भी पैदा होने लगती है।
इसे रोकने के लिए समय-समय पर कुछ कदम उठाए गए, तकनीकी उपाय भी निकाले गए। लेकिन संगठित रूप से इसका कारोबार करने वाली कंपनियों या समूहों ने उससे अलग कोई नया तरीका निकाल लिया। दरअसल, तेजी से तकनीकी पर निर्भर होते समाज में लोगों के फोन नंबर और उनका ब्योरा हासिल करने के लिए अलग-अलग बहाने पेश कर दिए जाते हैं।
आज किसी भी सामान की खरीदारी करने, सिनेमा देखने या किसी सेवा का उपयोग करते हुए ज्यादातर जगहों पर गैरजरूरी तरीके से भी मोबाइल नंबर मांगा जाता है। यही वजह है कि आज भी लोगों के फोन पर अवांछित काल या संदेश आने बंद नहीं हुए हैं और लोग इसकी शिकायत करते हुए पाए जाते हैं।
अब भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण यानी ट्राइ ने एक बार फिर अवांछित संदेश और फोन काल से छुटकारा दिलाने के लिए नई पहल की है। इसके तहत वाणिज्यिक संचार के लिहाज से प्रमुख संस्थाओं में उपभोक्ताओं की सहमति को डिजिटल रूप में पंजीकृत करने के लिए ट्राइ ने एक मंच विकसित करने का निर्देश दिया है।
सामान्य तौर पर ग्राहकों से हासिल की गई सहमति को संस्थानों के जरिए संभाल कर रखा जाता है, लेकिन इसके लिए कोई एक मंच नहीं होने की वजह से उनकी सत्यता की जांच में मुश्किलें पेश आती हैं। समस्या यह है कि वाणिज्यिक संचार के मकसद से इस तरह की गतिविधियों के लिए अगर उपभोक्ताओं से सहमति ली भी जाती है तो उसमें वैसी बातें विस्तार से नहीं बताई और समझाई जातीं, जो व्यक्ति के लिए परेशानी का कारण बन सकती हैं।
इसलिए अगर ट्राइ के निर्देश के तहत उपभोक्ताओं के हित में कोई एक मंच तैयार किया जाता है तो उसमें शर्तों या नियमों को लेकर पूरी तरह स्पष्टता और पारदर्शिता सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि लोग उसके नफा-नुकसान को आसानी से समझ सकें, उनके निजी ब्योरे का बेजा इस्तेमाल न हो।
हालत यह है कि निजी मोबाइल नंबर भी कुछ वाणिज्यिक कंपनियों के पास पहुंच जाते हैं और फिर अक्सर लोगों को फोन पर किसी कारोबार के लुभावने प्रस्ताव में फंसाने की कोशिश की जाती है या उससे संबंधित संदेश भेजे जाते हैं। ऐसा करते समय यह ध्यान रखना जरूरी नहीं समझा जाता कि व्यक्ति किस परिस्थिति में है।
जबकि ऐसे ज्यादातर काल निजी कंपनियों की ओर से किसी वस्तु या व्यवसाय के प्रचार-प्रसार के लिए किए जाते हैं या फिर किसी बैंकिंग योजना में ऋण का आकर्षक और फायदेमंद प्रस्ताव देकर व्यक्ति को उसमें उलझाने के लिए। बहुत सारे वैसे लोग इस तरह की बातें या संदेश के प्रभाव में फंस भी जाते हैं और इसका पता उन्हें तब चलता है जब बाद में उन्हें किसी खास योजना में ‘शर्तें लागू’ की नियमावली को बताते हुए अप्रत्याशित रकम की मांग की जाती है।
लगभग तेरह साल पहले 2011 में ट्राइ ने ‘डू नाट डिस्टर्ब’ सुविधा की शुरुआत की थी, जिसके तहत लोगों को अवांछित संदेशों और फोन काल से छुटकारा मिलने का आश्वासन दिया गया था। इसके बावजूद आज भी यह समस्या कायम है। तकनीक की सुविधा के साथ यह जरूरी है कि इसे परेशानी का कारण बनने से बचाया जाए।