देश के कई शहरों और महानगरों में वायु प्रदूषण इस कदर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है कि इसका सीधा असर लोगों के फेफड़ों पर पड़ने लगा है। नतीजा यह कि लोगों की आयु घट रही है और वे कई तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। हर वर्ष लाखों लोग सांस से जुड़ी बीमारियों के अलावा हृदय रोग और कैंसर जैसी जटिलताओं का सामना कर रहे हैं। दरअसल, लंबे समय तक जहरीली हवाओं के बीच रहने से फेफड़े की कोशिकाएं कमजोर पड़ने लगी हैं।

प्रदूषित हवाएं इम्युनिटी पॉवर को भी कर रहीं कमजोर

श्वसन रोग से संबंधित आठवें राष्ट्रीय सम्मेलन ‘रेस्पिकान 2025’ में विशेषज्ञों की ओर से साझा किए गए आंकड़ों ने चिंता बढ़ा दी है। उनके मुताबिक, देश में हर वर्ष फेफड़े के कैंसर के 81,700 नए मामले आ रहे हैं। इतना ही नहीं, हवा में प्रदूषण का असर केवल फेफड़े तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी कमजोर कर रहा है। बच्चों की सेहत पर भी जहरीली हवा का गंभीर असर पड़ रहा है, जो भविष्य के लिए एक बड़ी चेतावनी है।

विशेषज्ञों का कहना है कि फेफड़े का स्वास्थ्य कोई एक दिन में नहीं बिगड़ता। अगर सामूहिक रूप से समन्वित प्रयास किए जाएं, तो स्थिति को और ज्यादा गंभीर होने से बचाया जा सकता है। देश में सार्वजनिक परिवहन तंत्र को मजबूत नहीं किए जाने का नतीजा है कि लोग आवाजाही के लिए निजी वाहनों का अधिक इस्तेमाल करते हैं।

हर वर्ष सड़कों पर बड़ी संख्या में नए वाहन आ रहे हैं, जिससे प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। यह निराशाजनक है कि न तो उद्योगों से निकलने वाले कचरे तथा धुएं को नियंत्रित करने के ठोस उपाय अब तक हो पाए हैं और न ही फसलों के अवशेष जलाने की समस्या का कोई प्रभावी समाधान निकल पाया है। हालत यह है कि हर दिन लोगों के फेफड़ों में जहरीली हवा भर रही है।

विशेषज्ञों की चेतावनी को सरकार और समाज दोनों को गंभीरता से लेना होगा। हमें जीवनदायिनी वायु को प्राणघातक बनने से हर हाल में रोकना होगा। अगर हम ऐसा नहीं कर पाए, तो सांसों की डोर कमजोर होती चली जाएगी।