सुविधा ही जब समस्या बन जाए तो उसका निराकरण नितांत आवश्यक हो जाता है। मसला जब सार्वजनिक हित से जुड़ा हो तो उसका महत्त्व और भी गहरा हो जाता है। देश भर में टोल शुल्क की वसूली का मकसद आम लोगों के लिए सफर को आसान और सुगम बनाना बताया जाता है। मगर, लोगों को इन जगहों पर यदि घंटों जाम की समस्या से जूझना पड़े तो शुल्क वसूलने के औचित्य पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि अगर किसी व्यक्ति को पैंसठ किलोमीटर लंबे राजमार्ग को तय करने में बारह घंटे लगते हैं, तो उस यात्री को टोल शुल्क का भुगतान करने के लिए क्यों कहा जाए। यानी जिस दूरी को पार करने में तकरीबन एक घंटे का समय लगता हो, उसमें ग्यारह घंटे अतिरिक्त लग जाएं तो ऐसी सुविधा के नाम पर शुल्क की वसूली क्यों होनी चाहिए? यह मामला तो एक बानगी है, देश भर में न जाने कितने लोगों को रोजाना शुल्क का भुगतान करने के बावजूद इस तरह की समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। असल में जब किसी सड़क मार्ग पर टोल शुल्क की वसूली शुरू होती है तो यात्रियों को यह विश्वास होता है कि उनका सफर सुविधाजनक होगा।
हाईकोर्ट ने टोल शुल्क के निलंबन का दिया था आदेश
मगर, सुचारु यातायात प्रवाह बनाए रखने में विफलता से जन विश्वास भी डगमगाने लगता है। नियमानुसार, जो कंपनी टोल शुल्क की वसूली करती है, संबंधित सड़क मार्ग की देखभाल और निर्बाध यातायात की व्यवस्था करना भी उसी की जिम्मेदारी होती है। शीर्ष अदालत पहुंचा संबंधित मामला केरल के त्रिशूर से जुड़ा हुआ है। उच्च न्यायालय ने छह अगस्त को राष्ट्रीय राजमार्ग 544 के एडापल्ली-मन्नुथी खंड की खराब स्थिति और निर्माण कार्यों के कारण लगने वाले यातायात जाम के आधार पर टोल शुल्क के निलंबन का आदेश दिया था।
दरअसल, उच्च न्यायालय ने कहा था कि जब राष्ट्रीय राजमार्ग का रखरखाव ठीक से नहीं हो रहा है और यातायात जाम बहुत अधिक है, तो वाहन चालकों से टोल शुल्क नहीं वसूला जा सकता। हालांकि, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की ओर से टोल शुल्क वसूली को लेकर कई तरह के नियम बनाए गए हैं, जिनमें टोल नाके पर वाहन के रुकने की समय सीमा भी निर्धारित है।
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यानी उस समय सीमा के भीतर ही किसी एक वाहन से शुल्क लेने की प्रक्रिया पूरी करनी होती है। मगर, ज्यादातर जगहों पर इन नियमों का पूरी तरह पालन नहीं हो पाता है। यही वजह है कि आए दिन टोल नाकों पर यात्रियों और टोल कर्मियों के बीच विवाद एवं मारपीट की खबरें आती रहती हैं। रविवार को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में छुट्टी के बाद ड्यूटी पर लौट रहे एक सैन्यकर्मी की कार टोल नाके की लंबी कतार में फंस गई और टोल कर्मचारियों से जाम हटाने को कहने पर उसके साथ मारपीट की गई।
यहीं नहीं, कई बार जल्दबाजी में या अन्य किसी वजह से ज्यादा शुल्क कट जाने पर संबंधित यात्री को शेष पैसे वापस लेने के लिए बैंक की जटिल प्रक्रिया से जूझना पड़ता है। टोल नाकों पर जाम की स्थिति से छुटकारा दिलाने के लिए सरकार ने फास्टैग की व्यवस्था भी लागू की है, इसके बावजूद कई जगह वाहनों की लंबी कतारें अक्सर देखी जा सकती हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि टोल वसूलने वाली जगहों और संबंधित कंपनियों के लिए नियमों को कड़ाई से लागू करे, ताकि यात्रियों के लिए सफर वास्तव में सुविधाजनक बन सके।