हरियाणा सरकार ने एक बार फिर किसानों पर काबू पाने के लिए दमन का रास्ता चुना। करनाल में उन पर पुलिस ने जिस बेरहमी से लाठियां बरसार्इं, कई किसानों को गंभीर चोटें आर्इं, उसे लेकर स्वाभाविक ही राज्य सरकार की चौतरफा निंदा हो रही है। यहां तक कि पार्टी के भीतर से ही कुछ नेताओं ने इसके खिलाफ कड़े शब्दों में बयान दिए हैं। इस घटना को लेकर वहां के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट यानी एसडीएम का एक वीडियो सामने आया, जिसमें वे पुलिस कर्मियों को निर्देश दे रहे हैं कि कोई भी किसान इस जगह से आगे नहीं बढ़ने पाना चाहिए। जो भी आए, उसका सिर फोड़ दो।

पुलिस कर्मियों ने उनके आदेश का शब्दश: पालन किया। दरअसल, करनाल में भाजपा की राज्य इकाई की बैठक होनी थी, जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री, मंत्री और सभी बड़े नेता शिरकत करने वाले थे। किसानों ने इस अवसर पर विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया था। मगर राज्य सरकार ने करनाल को एक तरह से छावनी में तब्दील कर दिया। शहर में किसानों का प्रवेश पूरी तरह रोक दिया गया। इसलिए किसानों ने राजमार्ग के टोल नाके पर ही भाजपा नेताओं के विरोध का फैसला किया। उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष को काले झंडे दिखाए। फिर पुलिस ने जम कर लाठियां बरसाईं।

इस घटना पर लाठी चालन का आदेश देने वाले एसडीएम ने सफाई दी कि जब पुलिस पर पत्थर बरसाए जाएंगे, तो वे लाठी चलाएंगे ही। उनके इस तर्क से मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर भी संतुष्ट दिखे। बाद में उन्होंने भी वही बातें दोहरार्इं, जो उस अफसर ने कही थीं। इससे जाहिर हो गया कि सरकार के इशारे पर ही उस एसडीएम ने पुलिस कर्मियों को ऐसा करने का आदेश दिया था। इस पर हरियाणा और पंजाब में जगह-जगह किसानों ने रास्ते रोक दिए। फिर जब गिरफ्तार किए गए किसानों को छोड़ा गया, तभी उन्होंने रास्ते छोड़े।

अब स्थिति यह है कि किसान अपने आंदोलन को और तेज करने के मूड में आ गए हैं। किसानों का आंदोलन पिछले नौ महीनों से चल रहा है। यह शांतिपूर्ण तरीके से ही चलता रहा है। मगर हरियाणा सरकार लगातार उसे उकसाने, उग्र बनाने का प्रयास करती देखी गई है। जब यह आंदोलन शुरू हुआ था और हरियाणा, पंजाब के गांवों से किसानों के जत्थे दिल्ली की सीमाओं की तरफ बढ़ने लगे थे, तब हरियाणा सरकार ने जगह-जगह सड़कें खोद कर उन्हें रोकने की कोशिश की। फिर प्रदेश में जहां-जहां किसानों ने सरकार के कार्यक्रमों, उसके मंत्रियों, नेताओं आदि का घेराव करके विरोध प्रदर्शन करने, उन पर दबाव बनाने का प्रयास किया, वहां भी उन्हें बल प्रयोग से रोकने की कोशिश की गई।

हालांकि अब राज्य के उप-मुख्यमंत्री ने कहा है कि लाठी चालन का अदेश देने वाले अफसर के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, मगर उसकी प्रकृति क्या होगी, देखने की बात है। क्योंकि आमतौर पर सरकारें अपनी हुकुमउदूली करने वाले अफसरों के प्रति नरमदिल ही दिखती हैं। किसानों की मांगों का हल बातचीत के जरिए ही निकल सकता है, मगर सरकारें अपना अड़ियल रवैया छोड़ने को तैयार नहीं। उस पर खट्टर सरकार बल प्रयोग करके उन्हें और उकसाने का काम करती देखी जाती है। केंद्र सरकार भी ऐसी घटनाओं पर मूक दर्शक ही बनी रहती है। इससे एक तरह से उसके समर्थन का ही संकेत मिलता है। ऐसे में किसान आंदोलन के समाप्त होने की कोई सूरत बनती नजर नहीं आ रही। शायद सरकारें समझ नहीं पाई हैं कि दमन के सहारे इस आंदोलन को खत्म नहीं कराया जा सकता। इस तरह उन्हें उकसाना उनके लिए नुकसानदेह ही साबित होगा।