बजट में सरकार का जोर विकास और भविष्य के आर्थिक सुधारों पर है। इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले दस महीनों में कोरोना महामारी से उत्पन्न हालात ने अर्थव्यवस्था को तबाह करके रख दिया और पहले से मंदी झेल रहा देश महामंदी की गिरफ्त में आ गया। ऐसे में लोग यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि सरकार बजट में शायद कुछ ऐसे कदम उठाएगी जो आने वाले दिनों में थोड़ी राहत पहुंचाने वाले होंगे।
लेकिन बजट में ऐसे उपाय नदारद हैं जो लंबे समय से आर्थिक मार झेल रहे लोगों के लिए मरहम का काम करते। जबकि चार राज्यों- असम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर रेलवे नेटवर्क और राजमार्गों का जाल बिछाने के लिए बजट में मोटी रकम का प्रावधान है। प्रस्तावित बजट में आम लोगों को करों में भले कोई राहत नहीं दी गई हो, लेकिन पचहत्तर वर्ष से ऊपर के नागरिकों को अब आयकर रिटर्न दाखिल करने से मुक्त कर देना सराहनीय कदम है।
संभवत यह पहला ऐसा बजट है जो शून्य से नीचे चल रहे जीडीपी के दौर में पेश किया गया है। इसलिए सरकार का सारा जोर अर्थव्यवस्था को संकट से निकालने के उपायों पर ही केंद्रित है। मौजूदा वित्त वर्ष में समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों के लिए पच्चीस लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के जो पैकेज जारी किए गए, उन्हें लेकर प्रधानमंत्री ने पहले ही संकेत दे दिया था कि इन पैकेजों को छोटे बजट के रूप में देखा जाना चाहिए।
हालांकि इन प्रोत्साहन पैकेजों के ठोस नतीजे अभी सामने आने शुरू नहीं हुए है। 2021-22 के प्रस्तावित बजट में सबसे ज्यादा जोर पैसा जुटाने के उपायों पर है। इसके लिए सरकार ने भारतीय जीवन बीमा निगम और दूसरी सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेच कर पौने दो लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा है। यह नहीं भूलना चाहिए कि मौजूदा वित्त वर्ष में भी सरकार ने विनिवेश के जरिए दो लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन दुर्भाग्य से अब तक बीस हजार करोड़ रुपए भी नहीं मिल पाए हैं। ऐसे में विनिवेश के लक्ष्य को लेकर संहेद पैदा होता है।
इसके अलावा कई आयातित उत्पादों पर कृषि उपकर लगा कर राजस्व जुटाने का लक्ष्य रखा गया है। बजट में कृषि, स्वास्थ्य और विनिर्माण क्षेत्र में सुधार पर जोर ज्यादा है। स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च एक सौ सैंतीस फीसद बढ़ा कर 2.23 लाख करोड़ रुपए करने का प्रावधान है। हालांकि देश की जरूरत के मुकाबले यह पर्याप्त तो अभी भी नहीं है। कोरोना काल में स्वास्थ्य क्षेत्र की जो हालत देखने को मिली, उसे देखते हुए स्वास्थ्य क्षेत्र का बजट बढ़ाना जरूरी था।
राजस्व जुटाने के लिए सरकार ने ज्यादातर वस्तुओं पर उपकर लगाने का जो रास्ता अपनाया है, वह आने वाले वक्त में महंगाई बढ़ाने वाला साबित होगा। सर्राफा, शराब, कोयला और सेब से लेकर दालों तक पर तत्काल प्रभाव से कृषि संरचना एवं विकास उपकर लगा दिया गया है। साथ ही, पेट्रोल पर ढाई रुपए प्रति लीटर और डीजल पर चार रुपए प्रति लीटर का उपकर और लागू कर दिया गया है।
पिछले कुछ महीनों में देश में पेट्रोल और डीजल के तेजी से बढ़ते दामों ने मंहगाई बढ़ाने में आग में घी का काम किया है। पेट्रोल और डीजल महंगा होने का मतलब जीने की लागत बढ़ना है। उपकरों के जरिए पैसा जुटाने की योजना लोगों को और गंभीर संकट में धकेलेगी। देश की आबादी का बड़ा हिस्सा निन्म वर्ग और मध्य वर्ग का है। नौकरीपेशा को छोड़ दें तो करोड़ों लोग रोजाना कमा कर खाने वाले हैं।
पिछले दस महीने में देश में करोड़ों लोग बेरोजगार हुए और अभी भी बड़ी संख्या में लोगों के पास काम-धंधा नहीं है। ऐसे में लोगों के पास पैसा कहां से आएगा और लोग क्या खर्च करेंगे, यह बड़ा सवाल है। अर्थव्यवस्था लंबे समय से मांग का संकट झेल रही है। ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि बजट दूरदृष्टि वाला और दूरगामी नतीजे देने वाला साबित होगा। बजट सरकार को आर्थिक संकट से भले उबार दे, जो कहीं से संभव नहीं लगता, लेकिन आम आदमी को और मुश्किल में डाल देने वाला होगा।