यह ज्यादा अफसोसनाक तब हो जाता है, जब शासन में बैठे राजनेता और उच्च अधिकारी अपने कामकाज की शैली में पारदर्शिता और ईमानदारी के दावे करते हैं, वहीं एक नागरिक अपनी शिकायत पर ध्यान नहीं दिए जाने की वजह से हताशा के दौर में चला जाता है।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मुख्यमंत्री कार्यालय के सामने एक व्यक्ति ने इसलिए आग लगा कर जान देने की कोशिश की कि शासन-तंत्र में बैठे संबंधित अधिकारियों ने उसकी शिकायत की अनदेखी की और आरोपी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की थी। खबर के मुताबिक, कन्नौज जिले के रहने वाले उस व्यक्ति ने ग्राम प्रधान और लेखपाल से इस बात की शिकायत की थी कि उसकी जमीन पर दूसरे व्यक्ति ने अवैध रूप से कब्जा कर लिया है।
कायदे से शिकायत दर्ज होने के बाद संबंधित अधिकारियों को अपनी ड्यूटी के तहत समय पर मामले की जांच करनी चाहिए थी, ताकि न्याय का रास्ता तैयार होता। लेकिन उनके रुख में लगातार अनदेखी ने शिकायकर्ता को इस हद तक क्षुब्ध कर दिया कि उसे सार्वजनिक रूप से आत्मदाह की कोशिश करके अपनी परेशानी की ओर उच्चाधिकारियों का ध्यान खींचने का रास्ता अख्तियार करना पड़ा।
गनीमत बस यह थी कि मुख्यमंत्री कार्यालय के सामने ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों ने मुस्तैदी दिखाते हुए आग बुझाई और पीड़ित को नजदीक के अस्पताल में भर्ती कराया। अगर समय पर यह सक्रियता नहीं दिखाई गई होती तो मामला इस रूप में दर्ज हो जाता कि एक व्यक्ति को शासकीय कामकाज में हीला-हवाली की वजह से अपनी जान देनी पड़ी। निश्चित रूप से शिकायत पर कार्रवाई में देरी की वजह से किसी व्यक्ति के इस तरह के कदम उठाने को उचित नहीं ठहराया जा सकता।
पीड़ित व्यक्ति की कोशिश यह होनी चाहिए थी कि अगर निचले स्तर के कर्मचारी या अधिकारी उसकी सुनवाई नहीं कर रहे हैं तो वह उनके उच्चाधिकारियों तक अपनी बात पहुंचाने का रास्ता चुनता। लेकिन यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि समूचे शासन तंत्र में निचले से लेकर ऊपरी स्तर की जटिल संरचना में एक आम नागरिक अगर कोई शिकायत लेकर पहुंचता है तो वह टालमटोल या फिर संबंधित कर्मचारी या अधिकारी की उदासीनता की वजह से अक्सर हार जाता है। कई बार भ्रष्टाचार की वजह से भी ऐसी स्थिति सामने आती है।
यह स्थिति किसी भी सरकार और उसके तंत्र के लिए एक बड़ी विडंबना है कि जो व्यवस्था आम लोगों को सुविधा मुहैया कराने और उसकी शिकायतों पर गौर करके उसका निपटारा करने के लिए बनाई गई है, उसी की वजह से किसी को हताश होकर आत्मदाह की कोशिश जैसा अतिवादी कदम उठाना पड़ रहा है।
उत्तर प्रदेश में इससे पहले भी शिकायत पर सुनवाई नहीं होने की वजह से कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं। सवाल है कि अगर राज्य सरकार और उसके संबंधित महकमे अपने कामकाज में सुशासन, पारदर्शिता और समय पर दायित्व पूरा करने के दावे के साथ जनता को आश्वस्त करते हैं, तो किसी नागरिक के सामने अपनी शिकायतें नहीं सुने जाने की वजह से जान देने या इसकी कोशिश करने की नौबत क्यों आती है!
किसी काम या शिकायत के निपटारे के लिए एक निर्धारित अवधि होनी चाहिए। सरकार अगर खुद को जनता के प्रति जिम्मेदार मानती है तो उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शासन-तंत्र में आम लोगों की शिकायतों का निपटारा या जरूरत के काम समय पर पूरे हों। शासकीय कामकाज में टालमटोल, उदासीनता या भ्रष्टाचार सरकार में जनता का भरोसा कमजोर करते हैं।