स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए इतना पैसा पहले कभी आबंटित नहीं हुआ। यह इस बात का संकेत है कि देश के हर नागरिक को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए सरकार ने कमर कस ली है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर भारत कोरोना महामारी की मार नहीं झेलता तो स्वास्थ्य क्षेत्र की दुर्दशा को लेकर हमारी आंखें शायद नहीं खुलतीं। आजादी के सात दशक बाद भी स्वास्थ्य क्षेत्र संसाधनों का जैसा अभाव झेल रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है।
कोरोना काल में यह अनुभव भी हुआ कि देश में चिकित्सा सुविधाओं का आलम क्या है और महामारी जैसे संकट से निपटने में हम कितने लाचार हैं। अस्पतालों में बिस्तरों, दवाइयों से लेकर जीवन रक्षक प्रणालियों और चिकित्साकर्मियों तक की भारी कमी देखने को मिली। ऐसे में सबसे जरूरी था कि देश में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति को सुधारा जाए और नई चुनौतियों का सामना करने के लिए हर स्तर पर तैयार रहा जाए।
स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजट में जो रकम बढ़ाई गई है, उसे प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर हर स्तर की स्वास्थ्य सेवाओं और महामारी की पहचान और जांच के लिए अत्याधुनिक ढांचा तैयार करने पर खर्च किया जाएगा। बजट में प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ्य भारत योजना शुरू करने की बात है।
इस योजना के तहत अगले छह साल में चौंसठ हजार एक सौ अस्सी करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। जन स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल अपरिहार्य हो गया है। देश भर के अस्पतालों और जांच प्रयोगशालाओं को स्वास्थ्य सूचना पोर्टल से जोड़ने की योजना पहले ही शुरू हो चुकी है, ताकि इलाज के दौरान हर जिले तक में मरीज की स्थिति पर निगरानी रखी जा सके।
सरकार इस जरूरत को इसलिए भी समझ रही है क्योंकि निजी क्षेत्र के अस्पताल आम लोगों को बेहतर और गुणवत्ता पूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं तो मुहैया करा पाने न केवल नाकाम साबित हुए हैं, बल्कि इन अस्पतालों में महंगे इलाज ने भी लोगों को रुलाया है। अगर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा बेहतर हो तो लोगों को निजी अस्पतालों में जाने की जरूरत ही नहीं पड़े!
सवा सौ करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले भारत में सैंतीस हजार सात सौ पच्चीस छोटे-बड़े सरकारी अस्पताल, प्राथमिक व सामुदायिक चिकित्सा केंद्र है। आबादी और वैश्विक पैमाने के हिसाब से यह काफी कम है। देश में आज भी चौदह लाख डॉक्टरों और बीस लाख नर्सों की कमी है, यानी दस हजार लोगों पर एक सरकारी डॉक्टर और पांच सौ लोगों पर एक नर्स।
ग्रामीण इलाकों के ज्यादातर स्वास्थ्य केंद्रों में तो प्रसव जैसी सुविधाएं भी नहीं हैं। इलाज के लिए दूसरी जगह ले जाते में मरीज की मौत हो जाने की घटनाएं तो रोजाना की बात हैं। ऐसे में ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत बनाने की सख्त जरूरत है। देश अभी भी कोरोना संकट से मुक्त नहीं हुआ है।
सरकार ने टीकाकरण कार्यक्रम के लिए पैंतीस हजार करोड़ रुपए रखे है। भारत दवा और टीका निर्माण के क्षेत्र में दुनिया के प्रमुख देशों में गिना जाता है। इस वक्त भारत दुनिया को सौ से ज्यादा देशों को टीकों का निर्यात कर रहा है। इतना तो स्पष्ट है कि हमारे पास प्रतिभाओं और तकनीक की कमी नहीं है। सिर्फ पैसे और संसाधनों के अभाव में स्वास्थ्य क्षेत्र कमजोर होता चला गया। अगर जन स्वास्थ्य सरकारों की प्राथमिकता रहा होता तो आज तस्वीर कुछ और होती!