लगभग सभी बड़े हादसों और उनमें लोगों के हताहत होने की घटना के बाद राहत तथा मुआवजे के लिए सरकार की ओर से औपचारिक कदम उठाए जाते हैं। सबका ध्यान आमतौर पर इस बात पर टिका रहता है कि किस वाहन के चालक की गलती थी या कहीं कोई तकनीकी गड़बड़ी तो नहीं थी। मगर कई बार हादसों की वजहें ऐसे पहलू में भी छिपी होती हैं, जिन पर ध्यान देना लोग जरूरी नहीं समझते और न ही उसे अहम बिंदु माना जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए कुछ वैसे ही कारणों को चिह्नित करने की जरूरी पहल की है। अदालत ने सोमवार को राजस्थान के फलोदी इलाके में हुए सड़क हादसे के मामले में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय से दो हफ्तों के भीतर दुर्घटना के कारणों पर विस्तृत जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। इसमें संबंधित महकमों को फलोदी से गुजरने वाले राजमार्ग पर ढाबों की संख्या के साथ-साथ राजमार्ग की स्थिति और वहां सड़क रखरखाव के लिए ठेकेदार द्वारा अपनाए गए मानदंडों के बारे में भी बताना होगा।
हर लिहाज से सुरक्षित बनाने की जिम्मेदारी किसकी?
गौरतलब है कि उस हादसे में सड़क किनारे खड़े एक ट्रक के पीछे यात्रियों से भरा टेम्पो ट्रेवलर टकरा गया था, जिसमें दस महिलाओं और चार बच्चों सहित पंद्रह की जान चली गई थी। दरअसल, लंबी दूरी की यात्रा के लिए निर्बाध सड़कें तो बना दी जाती हैं, लेकिन उनकी गुणवत्ता और रखरखाव के लिए उच्चतम मानदंडों को बनाए रखना जरूरी नहीं समझा जाता। जबकि हर कुछ दूरी पर टोल संग्रह केंद्रों पर वाहन चालकों से शुल्क वसूलने में कोई रियायत नहीं बरती जाती।
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दूसरी ओर, ऐसे मामले अक्सर सामने आते रहते हैं, जिनमें किसी ढाबे के पास सड़क किनारे खड़े बड़े वाहन पर सही समय पर नजर न पड़ने की वजह से पीछे से कोई अन्य वाहन आकर टकरा जाता है और नाहक ही लोगों की जान चली जाती है। सवाल है कि जब तेज रफ्तार और निर्बाध सफर के लिए सड़कें बनाने का दावा किया जा रहा है, तो उसे हर लिहाज से सुरक्षित बनाने की जिम्मेदारी किसकी है। सुप्रीम कोर्ट ने फलोदी में हुए हादसे का स्वत: संज्ञान लेकर दरअसल हादसों के वास्तविक कारणों की ओर ध्यान दिलाने की कोशिश की है।
