तकनीकी संसाधनों के विकास के साथ-साथ उनके आपराधिक उपयोग की गलियां भी खुलती गई हैं। इन पर अंकुश लगाने की ज्यादातर कोशिशें विफल ही देखी जा रही हैं। कुछ मसले अब इतने संवेदनशील हैं कि समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय बन चुके हैं। बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार उनमें से एक है। इंटरनेट के विस्तार और हर हाथ में डिजिटल उपकरणों की पहुंच होने के बाद अब बड़े पैमाने पर ऐसी अश्लील सामग्री परोसी जाने लगी है, जो बच्चों को लेकर बनाई जाती है।
इस पर रोक लगाने के लिए मद्रास उच्च न्यायालय में गुहार लगाई गई थी। अदालत ने उस याचिका पर कहा था कि ‘बाल पोर्नोग्राफी’ देखने और उसे डाउनलोड करके रखने को पाक्सो कानून के अंतर्गत अपराध नहीं माना जा सकता। उसी आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। अब सर्वोच्च न्यायालय ने न केवल मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए ऐसी सामग्री को डाउनलोड करके रखना और दूसरों को भेजना पाक्सो कानून के अंतर्गत अपराध माना है, बल्कि इस विषय में कई विस्तृत निर्देश दिए हैं। देश की सभी अदालतों से कहा है कि अब वे ‘बाल पोर्नोग्राफी’ के बजाय ‘बाल यौनशोषण और दुर्व्यवहार सामग्री’ पद का उपयोग करें। साथ ही केंद्र सरकार से कहा है कि वह पाक्सो कानून में संशोधन कर इसे अधिक स्पष्ट और व्यापक बनाए। जब तक कानून नहीं बनता, तब तक इस पर अध्यादेश जारी करे।
बाल यौनशोषण और दुर्व्यवहार पर अंकुश लगाने के लिए हालांकि कठोर कानून हैं, पर उनमें कुछ जगहों पर स्पष्टता न होने के कारण अश्लील सामग्री तैयार करने के लिए बच्चों का भी उपयोग किया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसी कमजोरी को दुरुस्त करने का निर्देश दिया है। दरअसल, अश्लील सामग्री का कारोबार दुनिया भर में फैला हुआ है। कुछ देशों ने तो इसे कानूनी मान्यता भी दे रखी है, जैसे जर्मनी, फ्रांस आदि।
डिजिटल माध्यम से परोसी जा रही अश्लील सामग्री
मगर पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह डिजिटल माध्यमों पर अश्लील सामग्री परोसने की प्रवृत्ति और उससे समाजों में हिंसा तथा यौनशोषण की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं, उससे दुनिया भर में ऐसी सामग्री पर अंकुश लगाने की मांग उठने लगी है। हमारे यहां ऐसी सामग्री के निर्माण को दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। मगर इंटरनेट की दुनिया इतनी जटिल बन चुकी है कि ऐसी सामग्री की पहुंच रोकना कठिन बना हुआ है। इनमें बच्चों का उपयोग रोकना बड़ी चुनौती है।
सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से कहा है कि यौनशिक्षा को व्यापक रूप से लागू किया जाना चाहिए। इससे ऐसे अपराधों पर काबू पाने में काफी मदद मिल सकती है। दरअसल, बहुत सारे लोग यौनशिक्षा के नाम पर ऐसा सामग्री को उचित ठहराते देखे जाते हैं। मगर अश्लील सामग्री निर्माण के लिए जिस तरह बच्चों की तस्करी बढ़ी है और उनके साथ दुर्व्यवहार और उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ी हैं, उससे उनके मानवाधिकारों को लेकर गंभीर चिंता पैदा हो गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से विचार करने का दिया मौका
निस्संदेह इस पर अंकुश लगाने के लिए कठोर कानून की जरूरत है। मगर अश्लील सामग्री के निर्माण और उनकी पहुंच पर रोक लगाना फिर भी बड़ी चुनौती बनी रह सकती है। जिन देशों में ऐसी सामग्री बनाने पर रोक नहीं है, अश्लील सामग्री बनाने वाले उन जगहों का उपयोग करते हैं। बाल अधिकारों को लेकर व्यापक पहल की जरूरत है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ समझौतों की भी जरूरत हो सकती है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय पर गंभीरता से विचार करने का एक अवसर दिया है।