चिकित्सा विज्ञान के स्नातक पाठ्यक्रम के लिए आयोजित राष्ट्रीय पात्रता और प्रवेश परीक्षा यानी नीट में धांधली के आरोपों को सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीरता से लिया है। उसने राष्ट्रीय परीक्षा एजंसी यानी एनटीए से इस मामले से जुड़े सवालों का जवाब देने को कहा है। दरअसल, इस बार की नीट परीक्षा के नतीजों में कई तरह की विसंगतियां देखी गई हैं। जब परीक्षा ली गई, तब बिहार और राजस्थान के कुछ केंद्रों पर गलत पर्चे बांट दिए गए थे। बाद में उन्हें दुरुस्त कर दिया गया।

नतीजे तय समय से दस दिन पहले घोषित होना भी संदेह बढ़ाता है

तब विद्यार्थियों ने आरोप लगाया था कि पर्चाफोड़ हुआ है, परीक्षा रद्द कर दुबारा कराई जानी चाहिए। लेकिन एनटीए ने इससे इनकार कर दिया। उसका कहना है कि तकनीकी गड़बड़ी की वजह से गलत पर्चा बंट गया था। फिर नतीजे तय तिथि से दस दिन पहले ही घोषित कर दिए गए। नतीजों में सड़सठ विद्यार्थियों को पूरे सात सौ बीस अंक मिले हैं। यह पहली बार हुआ है। एनटीए का कहना है कि जिन विद्यार्थियों को देर से पर्चे मिले, उन्हें समय की हानि होने के चलते कृपांक दिए गए। उसका क्या आधार है, यह भी स्पष्ट नहीं है।

एनटीए ने परीक्षा में पारदर्शिता और शुचिता बरतने की बात कही है

हालांकि एनटीए अब भी अपनी बात पर कायम है कि पर्चाफोड़ नहीं हुआ और न गलत तरीके से किसी विद्यार्थी को अंक दिए गए। परीक्षा में पूरी तरह पारदर्शिता और शुचिता बरती गई है। उसका यह तर्क सर्वोच्च न्यायालय के सामने सही ठहर पाता है या नहीं, देखने की बात है। एनटीए ने कृपांक की शिकायतों के समाधान के लिए एक जांच समिति गठित कर दी है, लेकिन उस पर विद्यार्थियों को भरोसा नहीं है।

दरअसल, चिकित्सा पाठ्यक्रमों के दाखिले में धांधली की शिकायतें पुरानी हैं। उन शिकायतों को दूर करने के मकसद से ही एनटीए के माध्यम से प्रवेश परीक्षा कराने का निर्णय किया गया था। एनटीए की बनाई गई व्यवस्था के तहत नीट की परीक्षा के प्रश्नपत्र देश के सभी केंद्रों पर एक साथ विद्यार्थियों को मिलते हैं। उनमें किसी तरह की गड़बड़ी की गुंजाइश कम रहने का दावा किया जाता है। फिर भी, जिस तरह एनटीए की दूसरी परीक्षाओं में पर्चे बाहर निकल गए और कई परीक्षाएं रद्द करनी पड़ीं, उससे नीट को लेकर भी आशंका गहरी हुई है। एनटीए को बहुत भरोसेमंद और चाक-चौबंद संस्था माना जाता है, अगर उसकी परीक्षाओं में भी धांधली के आरोप लग रहे हैं, तो स्वाभाविक ही इससे उसकी साख पर सवाल उठते हैं।

पिछले कुछ वर्षों में प्रतियोगी और प्रवेश परीक्षाओं के पर्चे बाहर होने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। न केवल छोटे सरकारी पदों के लिए, बल्कि राज्यों के लोकसेवा आयोगों की परीक्षाओं के भी पर्चे बाहर होने की घटनाएं हो चुकी हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड में अनेक प्रतियोगी परीक्षाएं इसीलिए रद्द करनी पड़ीं कि उनके पर्चे परीक्षा से पहले ही बाहर निकल चुके थे।

इसे लेकर पहले उत्तराखंड सरकार ने कड़े कानून बनाए, फिर केंद्र सरकार ने भी कानून बनाने की घोषणा की। नकल माफिया पर नकेल कसने के लिए हर सरकार कमर कसती दिखती है, लेकिन नकल कराने वालों के हौसले पस्त पड़ते नजर नहीं आते। परीक्षाएं रद्द होने से बहुत सारे विद्यार्थियों की मेहनत पर पानी फिरता, उनका मनोबल टूटता और पैसे की बर्बादी होती है। इस हताशा में कई विद्यार्थी खुदकुशी तक का रास्ता अख्तियार करते देखे जा रहे हैं। जब तक सरकारें इस मामले में दृढ़ इच्छाशक्ति नहीं दिखाएंगी, यह सिलसिला शायद ही रुके।