उच्चतम न्यायालय ने आवारा कुत्तों को लेकर एक बार फिर जो कहा है, वह जन सुरक्षा के लिहाज से अहम है। दरअसल, संस्थागत क्षेत्रों और राजमार्गों से इन्हें हटाने के आदेश को व्यापक परिप्रेक्ष्य में लेने की जरूरत है। इसमें कोई दोराय नहीं कि न केवल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, बल्कि देशभर में आवारा कुत्तों की समस्या गंभीर है। इस संबंध में मीडिया रपटों को अदालत ने कुछ समय पहले संज्ञान में लिया था। तब अदालत ने स्पष्ट कर दिया था कि लोगों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। इस बार भी अदालत ने अपने आदेश में जन सुरक्षा को केंद्र में रखा है।

गौरतलब है कि शीर्ष अदालत की विशेष पीठ ने शुक्रवार को आवारा कुत्तों के मामले में कई बातें कहीं। अदालत ने शैक्षणिक केंद्रों, अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों जैसे संस्थागत क्षेत्रों में कुत्तों के काटे जाने की बढ़ती घटनाओं को संज्ञान में लिया है।

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इस बार अधिकारियों को सचेत किया गया है। न्यायालय ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण सहित सभी प्राधिकारियों को आदेश दिया है कि राजमार्गों से आवारा कुत्तों और अन्य मवेशियों को हटा कर निर्दिष्ट आश्रय स्थलों में ले जाया जाए। राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को स्थानीय नगर निकायों के माध्यम से ऐसे संस्थागत क्षेत्रों की पहचान करनी होगी जहां आवारा कुत्ते पाए जाते हैं।

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मनुष्य और पशु के बीच लगातार जटिल होते इस मसले पर अदालत ने सख्त रुख दिखाया है। आवारा कुत्तों का प्रबंधन, सुरक्षा और स्वास्थ्य उसकी प्राथमिकता में हैं। सवाल है कि गंभीर होती गई इस समस्या के लिए कौन जिम्मेदार है? यह कहना गलत न होगा कि पशु जन्म नियंत्रण नियमों को गंभीरता से लिया गया होता, तो आवारा कुत्तों की संख्या बेतहाशा नहीं बढ़ती और न ही उन्हें सड़कों से उठाने की नौबत आती।

हालांकि पिछली बार अदालत ने अपने संशोधित आदेश में कुत्तों के बंध्याकरण और टीकाकरण के बाद उन्हें उसी जगह छोड़ने का निर्देश दिया था। मगर इस बार का आदेश स्पष्ट है। अब अधिकारियों को राजमार्गों और संस्थागत क्षेत्रों से आवारा कुत्तों और अन्य जानवरों को हटाना होगा। उन्हें दोबारा उसी जगह नहीं छोड़ा जा सकेगा। अदालत ने दरअसल मानवीय संवेदना और जन सुरक्षा के सवालों के बीच एक संतुलन के तकाजे पर जोर दिया है।