सड़कों-गलियों में खुला घूमने वाले कुत्तों पर उच्चतम न्यायालय का शुक्रवार को आया ताजा निर्देश विवेकसम्मत और तार्किक है। निस्संदेह अदालत ने पशु प्रेमियों की संवेदनाओं का खयाल रखा है, लेकिन साथ यह भी स्पष्ट कर दिया है कि जन सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं होगा और कोई भी नागरिक सड़क पर कहीं भी कुत्तों को खाना नहीं खिलाएगा। दरअसल, राजधानी में कुत्तों के काटने की घटनाएं बढ़ गई हैं। इसे संज्ञान में लेकर अदालत ने उन्हें जल्द से जल्द सड़कों से हटा कर आश्रय स्थल भेजने का निर्देश दिया था। अदालत के इस फैसले को लेकर व्यापक स्तर पर चिंता जाहिर की गई कि क्या आवारा कुत्तों के प्रति थोड़ा नरम नहीं हुआ जा सकता है।
मगर सवाल यह है कि इस पूरी समस्या के लिए कौन जिम्मेदार है? अगर संबंधित महकमों की ओर से पशु जन्म नियंत्रण नियमों को गंभीरता से लागू किया गया होता, तो न कुत्तों की संख्या बढ़ती और न ही उन्हें सड़कों से हटाने की नौबत आती। अब अपने निर्देश में शीर्ष अदालत ने कहा है कि हटाए गए कुत्तों का बंध्याकरण हो, टीकाकरण किया जाए और उन्हें उसी क्षेत्र में छोड़ दिया जाए, जहां से उन्हें हटाया गया था। हालांकि यह निर्देश आक्रामक व्यवहार वाले और संक्रमण के संदेह वाले कुत्तों पर लागू नहीं होगा।
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गौरतलब है कि हर सभ्यता में कुत्ते मनुष्य के साथ रहे हैं। वे इंसानों के अच्छे साथी साबित हुए। संवेदना के स्तर पर परस्पर जुड़ाव महसूस किया जा सकता है। कुत्ते आज लोगों के जीवन का हिस्सा हैं। मगर अब समय आ गया है कि हम उन कारणों की भी पड़ताल करें, जिनकी वजह से कुत्तों का व्यवहार आक्रामक हुआ। कई राज्यों में इनकी बढ़ती संख्या भी चिंता का विषय है।
अगर संबंधित निकायों ने ध्यान दिया होता, तो अदालत सख्त कदम नहीं उठाती। हालांकि उसका कहना सही है कि यह समग्र समस्या स्थानीय अधिकारियों की निष्क्रियता का नतीजा है। कुत्तों के प्रति करुणा दिखानी चाहिए, संवेदनशील होना चाहिए, लेकिन कहीं भी उन्हें खाना खिलाने की आदत हमें बदलनी होगी। इसीलिए ताकीद की गई है कि इसके लिए खास जगह निर्धारित हो। इसे गंभीरता से लेने के साथ-साथ बच्चों और बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। शीर्ष अदालत का निर्देश व्यापक और सार्थक है।