अभिव्यक्ति का अधिकार लोकतंत्र का जीवन-तत्त्व है। अगर किसी भी वजह से इस अधिकार को बाधित किया जाता है, तो इसका अंतिम नुकसान देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को होगा। हालांकि कई बार ऐसी स्थितियां सामने आती हैं, जब किसी व्यक्ति की टिप्पणी को उसकी अभिव्यक्ति के तौर पर देखा जाता है, लेकिन वह किसी अन्य व्यक्ति की छवि को चोट पहुंचाती दिखती है। शायद यही वजह है कि कई बार अभिव्यक्ति की सीमा का भी सवाल उठाया जाता रहा है। ऐसे मामले अक्सर सामने आते रहे हैं, जिनमें किसी टिप्पणी को कोई व्यक्ति अपनी मानहानि के तौर पर देखता है और ऐसा करने वाले के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग करता है।
यानी यह संभव है कि एक व्यक्ति के अपने विचारों की अभिव्यक्ति को कानून के मुताबिक किसी के खिलाफ आपराधिक मानहानि की श्रेणी में रखा जाए। मगर यह भी सच है कि इससे संबंधित कानून को स्वतंत्र आवाजों को दबाने और गैरजरूरी तरीके से परेशान करने के एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। अब सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए इस संबंध में जो कहा है, वह अभिव्यक्ति के अधिकार के संदर्भ में बेहद अहम साबित हो सकता है।
एक समाचार वेबसाइट से जुड़े मामले में अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि आपराधिक मानहानि को अब अपराध की श्रेणी से हटाने का समय आ गया है। अदालत की यह टिप्पणी संबंधित वेबसाइट पर वर्ष 2016 में प्रकाशित एक लेख को लेकर दायर आपराधिक मानहानि के मामले में सामने आई। भारत उन देशों में है, जहां मानहानि को कानूनन अपराध माना जाता है।
हालांकि कुछ अन्य देशों में यह मामला केवल नागरिक विवाद है, जिसमें मुआवजे की मांग की जा सकती है। भारत में इससे संबंधित कानून का असर इस रूप में देखा जाता है कि अक्सर राजनीतिक स्तर पर किसी संदर्भ में दो पक्षों के बीच आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते हैं तो उसमें कोई एक पक्ष आरोपों को अपने खिलाफ आपराधिक मानहानि बता कर कानूनी कार्रवाई की मांग करता है।
ऐसे कुछ मामले हो सकते हैं, जिनमें वास्तव में जानबूझ कर किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाने की कोशिश की गई हो, लेकिन ज्यादातर मामलों में इस आरोप में घिरे व्यक्ति के खिलाफ शिकायत का कोई मजबूत आधार नहीं पाया जाता। वहीं इस कानून के तहत दर्ज मुकदमों के जरिए स्वतंत्र स्वरों को बाधित करने के मामले आम पाए जाते हैं। शायद यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को कसौटी पर रखा है।
गौरतलब है कि इससे पहले वर्ष 2016 में शीर्ष अदालत ने ही एक मामले में आपराधिक मानहानि से संबंधित कानून को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया था। अब इसी अदालत ने जिस तरह मानहानि को अपराध की श्रेणी से हटाने की बात कही है, उसके अपने आधार हैं। यह छिपा नहीं है कि इस कानून का सहारा लेकर पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक विरोधियों की आवाज को दबाने की कोशिश की जाती है।
कई बार किसी ऐसी टिप्पणी को भी मानहानिकारक बता दिया जाता है, जो तथ्यों पर आधारित होती हैं या उससे कोई बहस खड़ी हो सकती है। इस बात की संभावना हो सकती है कि कोई व्यक्ति किसी खास बयान या समाचार को अपनी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने वाला माने, लेकिन अगर वह बयान या समाचार व्यापक जनहित के सवालों से जुड़ा है, तो उस पर विचार किया जाना और सही पक्ष सामने लाना देश की लोकतांत्रिक जड़ों को ही मजबूत करेगा।