राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा यानी नीट संबंधी केंद्र के अध्यादेश को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने से कुछ राज्यों को एक साल के लिए राहत मिल गई है। निजी कॉलेजों और डीम्ड विश्वविद्यालयों को इससे कोई लाभ नहीं होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार, भारतीय चिकित्सा परिषद और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की सहमति के आधार पर नीट लागू करने का आदेश दिया था। मगर कुछ राज्यों को इस पर आपत्ति थी कि इससे क्षेत्रीय भाषा में समान पाठ्यक्रम तैयार करने और प्रवेश परीक्षाएं आयोजित कराने आदि में मुश्किल आ सकती है। इसी आधार पर केंद्र ने अधिसूचना तैयार की थी। मगर कानूनी अड़चन थी कि क्या सर्वोच्च न्यायालय के किसी फैसले के खिलाफ सरकार अध्यादेश ला सकती है? राष्ट्रपति ने इस पर कानूनी सलाह ली और आखिरकार अध्यादेश को हरी झंडी दिखा दी। हालांकि सरकार ने अध्यादेश में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलटने की कोशिश नहीं की है, उसने सिर्फ कुछ राज्यों को इसे लागू करने में एक साल की मोहलत दी है। राज्यों के सामने विकल्प खुला रखा गया है कि वे चाहें तो नीट में शामिल हो सकते हैं या फिर अपने ढंग से प्रवेश परीक्षाएं आयोजित करें। अगले साल से उन्हें अनिवार्य रूप से नीट के जरिए ही प्रवेश प्रक्रिया पूरी करनी होगी। इस तरह चिकित्सा संस्थानों में दाखिले के समय कोटे को लेकर चलने वाली धांधली रुक जाएगी। अभी तक निजी और सरकारी कॉलेजों में मैनेजमेंट, एनआरआइ आदि के लिए जो कोटे निर्धारित हैं, उन सीटों पर कॉलेज खुद दाखिले की शर्तें तय करते हैं। मगर अब सभी तरह के कोटे केंद्रीय परीक्षा के जरिए ही भरे जा सकेंगे।

मेडिकल कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में एमबीबीएस यानी चिकित्सा स्नातक पाठ्यक्रम में दखिले के समय बड़े पैमाने पर होने वाली धांधली रोकने की मांग लंबे समय से की जा रही थी। इसके लिए केंद्रीकृत प्रवेश परीक्षा प्रणाली लागू करने का सुझाव दिया जा रहा था। इंजीनियरिंग कॉलेजों में यह प्रक्रिया लागू है। मगर निजी कॉलेजों और राज्य सरकारों की अनिच्छा के चलते इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया जा पा रहा था। छिपी बात नहीं है कि चिकित्सा संस्थानों में दाखिले के लिए होड़ लगी रहती है। चूंकि चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई के बाद रोजगार की उस तरह समस्या नहीं रहती जैसे दूसरे तकनीकी पाठ्यक्रमों के बाद रहती है। इसलिए पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए कुछ अधिक भीड़ रहती है। चूंकि निजी संस्थानों में मैनेजमेंट कोटे का प्रावधान है और दाखिले के लिए कॉलेज खुद शर्तें तय करते हैं, इसलिए वहां ज्यादातर सीटों पर पैसे वाले लोगों के बच्चे काबिज हो जाते हैं। इन पाठ्यक्रमों में मुंहमांगी रकम देने वालों की कतार लगी रहती है। जाहिर है, मैनेजमेंट के लिए कॉलेज चलाना कमाई का बड़ा धंधा बन चुका है। मगर दाखिले में पारदर्शिता और व्यावहारिक व्यवस्था न होने के चलते बहुत सारे मेधावी विद्यार्थियों को दाखिले से वंचित होना पड़ता है। केंद्रीय पात्रता परीक्षा के चलते न सिर्फ निजी कॉलेजों, अल्पसंख्यक समुदाय के संस्थानों, डीम्ड विश्वविद्यालयों और राज्य सरकारों के अधीन चलने वाले विश्वविद्यालयों-कॉलेजों में चिकित्सा स्नातक पाठ्यक्रमों में मनमानी रुक सकेगी, बल्कि मेधावी विद्यार्थियों को उचित तरीके से दाखिला मिल सकेगा। ऐसे विद्यार्थियों के प्रवेश पर भी रोक लग सकेगी, जो चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई के योग्य नहीं हैं और पैसे के बल पर दाखिला पाने की कोशिश करते हैं। सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि नियमों का सही तरीके से पालन हो।