दिल्ली के कुछ अस्पतालों में नकली दवाओं की आपूर्ति की जैसी खबरें आई हैं, वे बताती हैं कि आए दिन स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपने काम को बढ़ा-चढ़ा कर प्रचारित करने के सरकारी दावों की हकीकत क्या है। हालत यह है कि पिछले कुछ दिनों के दौरान ही दिल्ली के अस्पतालों में कई ऐसी दवाओं की आपूर्ति के मामले पकड़ में आए, जिनका सेवन करने के बाद किसी मरीज के शरीर पर कैसा दुष्प्रभाव होगा, कहा नहीं जा सकता।
यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि किसी मिलावटी या नकली दवा के असर से मौत तक की आशंका पैदा हो सकती है। गौरतलब है कि बुधवार को एक और दवा के नकली पाए जाने की बात सामने आई। कुछ ही दिन पहले दिल्ली के कुछ अस्पतालों में कई नकली दवाओं की आपूर्ति के मामले पाए जाने की घटना ने गंभीर चिंता पैदा की है।
इसके बावजूद अब फिर से अस्पतालों में एक और दवा पर उठा सवाल बताता है कि यहां सरकार की नाक के नीचे स्वास्थ्य के मसले पर किस तरह का खिलवाड़ चल रहा है। हाल ही में दिल्ली के उपराज्यपाल ने खराब गुणवत्ता वाली कुछ दवाओं के मामले में सीबीआइ जांच की सिफारिश की थी।
दरअसल, दिल्ली सरकार के अस्पतालों में नकली दवाएं दिए जाने के मामले में कुछ दिनों पहले विशेष निगरानी सचिव ने स्वास्थ्य सचिव को पत्र लिखा था। इस खत में साफ कहा गया कि दिल्ली ड्रग्स टेस्टिंग लेबोरेटरी और अन्य सरकारी मान्यता प्राप्त निजी जांच घरों की रपट से पता चला है कि कई कंपनियों की दवाएं गुणवत्ता के मानकों के मुताबिक नहीं हैं।
संदिग्ध पाई गई दवाओं में मिर्गी और दौरे, पेट में अतिरिक्त एसिड, फेफड़ों में जानलेवा सूजन को ठीक करने वाले स्टेरायड के अलावा जोड़ों और शरीर में सूजन को ठीक करने वाली दवाएं शामिल हैं। मामले के खुलासे के बाद दिल्ली सरकार ने सभी सरकारी अस्पतालों में प्रयोगशाला जांच में नाकाम रहीं दवाओं को जब्त कर मरीजों के इस्तेमाल के लिए न देने के आदेश दिए थे। सवाल है कि इतने दिनों से स्वास्थ्य महकमे के भीतर दवाओं की जांच के लिए कैसा तंत्र चल रहा था जिसके रहते नकली दवा का कारोबार करने वालों को अपनी मंशा को अंजाम देने में कोई बाधा महसूस नहीं हुई!
जिन अस्पतालों में अलग-अलग बीमारियों की स्थिति में दी जाने वाली दवाओं के नकली होने का मामला सामने आया है, उनमें लाखों लोग इस उम्मीद में अपना इलाज कराने जाते हैं कि वहां उनका जीवन बचाने या बीमारी ठीक करने के उपाय मौजूद हैं। मगर कई बीमारियों के मरीजों को वैसी दवाएं दी जाती रहीं, जो अब जाकर निर्धारित मानकों पर असफल पाई गईं।
अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने लोगों के शरीर पर उन दवाओं ने कैसा दीर्घकालिक असर डाला होगा। जब भी जनहित से जुड़ा कोई सवाल उठता है तो दिल्ली सरकार यहां की जनता को गुणवत्ता से लैस अच्छी और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं हर जगह मुहैया कराने का हवाला देती है। लेकिन अगर बड़े और महत्त्वपूर्ण माने जाने वाले अस्पतालों में भी नकली दवाओं की आपूर्ति की जाती रही तो बाकी जगहों की स्थिति के बारे में अंदाजा ही लगाया जा सकता है।
यह ध्यान रखने की जरूरत है कि एक दवा का दुष्प्रभाव किसी मरीज के शरीर में असाध्य रोग या जटिलताएं पैदा करने से लेकर उसके लिए मौत का कारण भी बन सकता है। इसलिए सरकारी अस्पतालों या कहीं भी नकली या मिलावटी दवा के कारोबार को रोकने के मकसद से सभी स्तरों पर सख्त कार्रवाई के लिए एक ठोस तंत्र और कानूनी सजा के प्रावधान लागू किए जाने चाहिए।