आज के वैज्ञानिक दौर में भी समाज में अंधविश्वास की जड़ें इतने गहरे तक फैली हुई हैं कि कई बार लोग अपनी जान तक जोखिम में डाल देते हैं। कर्म और तर्क के सिद्धांत को कोने में रखकर कुछ लोग तंत्र-मंत्र और जादू-टोना का सहारा लेते हैं, जिसके अक्सर भयावह परिणाम सामने आते हैं। कभी तांत्रिक अनुष्ठान में किसी व्यक्ति की हत्या कर दी जाती है, तो कभी डायन कहकर सार्वजनिक तौर पर प्रताड़ना की हदें पार कर दी जाती हैं।

ऐसी ही एक घटना छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में सामने आई है, जहां एक फार्म हाउस से तीन लोगों के शव बरामद किए गए हैं। प्राथमिक जांच के बाद पुलिस ने आंशका जताई है कि पैसे दोगुने करने के लिए आयोजित एक तांत्रिक अनुष्ठान के दौरान इन लोगों की गला दबाकर हत्या की गई है।

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सवाल है कि इस तरह का अंधविश्वास फैलाने और आपराधिक घटनाओं पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी आखिर किसकी है? क्या शासन-प्रशासन का दायित्व अपराध से पहले ही उसके पैरों को कुचल देने का नहीं है? तंत्र-मंत्र जैसे अंधविश्वास के नाम पर हत्या कर देने या प्रताड़ित करने की खबरें अक्सर आती रहती हैं। इस तरह की अवैज्ञानिक धारणा में कुछ लोग तो इतने हताश हो जाते हैं कि आत्महत्या तक कर लेते हैं।

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वर्ष 2018 में दिल्ली के बुराड़ी में एक परिवार द्वारा सामूहिक रूप से आत्महत्या कर लेने की घटना को आज भी एक उदाहरण के तौर पर देखा जाता है, जिसमें अंधविश्वास का ही मामला सामने आया था। तांत्रिक विद्या का इतना बड़ा प्रभाव क्षेत्र है कि उच्च शिक्षित वर्ग के लोग भी भ्रम के इस जाल में फंस जाते हैं।

ऐसे में जरूरी है कि तंत्र-मंत्र के बल पर अपनी समस्याओं का समाधान तलाशने की बजाय समाज में कुशल, प्रगतिशील और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दिया जाए। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि आज हर शहर, कस्बों और गांवों में तांत्रिकों ने अपने अडडे् बना रखे हैं, जो लोगों को अंधविश्वास के अंधेरे में धकेल रहे हैं। इसी तरह की गतिविधियां अपराध को भी जन्म देती हैं। इन पर अंकुश लगाने के लिए सरकार और प्रशासन को कड़े कदम उठाने होंगे।

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