प्रतियोगी परीक्षाओं में गड़बड़ी और पर्चाफोड़ के मामले उजागर होने से स्वाभाविक ही परीक्षा आयोजित करने वाली संस्थाओं पर सवाल उठते हैं। खासकर राष्ट्रीय परीक्षा एजंसी यानी एनटीए की ओर से कराई जाने वाली राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट-यूजी) में पर्चाफोड़ से देश के लाखों विद्यार्थियों के विश्वास को धक्का पहुंचा है। परीक्षाओं की विश्वसनीयता को लेकर केंद्र और राज्य सरकारें चिंतित भी हैं। इसी के मद्देनजर केंद्र सरकार ने सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम 2024 लागू किया है, जिसकी अधिसूचना पिछले माह जारी की गई थी।

उत्तर प्रदेश सरकार ने परीक्षा में गड़बड़ी और पर्चाफोड़ पर अंकुश लगाने के लिए हाल में नया कानून बनाया है। अब बिहार सरकार ने भी प्रदेश लोक परीक्षा (पीई) अनुचित साधन निवारण विधेयक, 2024 विधानसभा में पारित किया है। दरअसल, बिहार सरकार ने इसकी तात्कालिक जरूरत इसलिए समझी, क्योंकि नीट-यूजी पर्चाफोड़ मामले के तार वहां से भी जुड़े हैं। कुछ अन्य राज्य भी इस तरह का कानून बनाने पर विचार कर रहे हैं।

केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से बनाए गए कानूनों में परीक्षा में गड़बड़ी और पर्चाफोड़ के दोषियों को सजा के कड़े प्रावधान किए गए हैं। मगर, सवाल है कि क्या हर राज्य में अलग-अलग कानून बना देने से ऐसे मामलों पर अंकुश लग पाएगा? नीट-यूजी पर्चाफोड़ के मामले में केंद्र सरकार ने कुछ तात्कालिक कदम उठाए हैं।

नया कानून लागू करने के साथ ही इस मामले की जांच सीबीआइ को सौंपी गई है और कई लोगों की गिरफ्तारी भी हुई है। मगर, क्या ये कदम छात्रों और अभिभावकों की परेशानी दूर करने के लिए काफी हैं? यह कवायद मात्र रोग के लक्षणों का उपचार करना है। मूल समस्या कहीं अधिक गहरी है और इसकी जड़ों पर प्रहार करने की जरूरत है। प्रतियोगी परीक्षाओं में कुशल प्रतिभाओं का चयन जरूरी है और यह तभी संभव होगा, जब इन परीक्षाओं की शुचिता कायम रखी जाएगी। हर महत्त्वपूर्ण संस्थान और एजंसी के कार्य तभी उत्तम स्तर के होंगे, जब सुयोग्य व्यक्तियों को उनकी जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। साथ ही, परीक्षाओं में गड़बड़ी रोकने संबंधी कानूनों पर कड़ाई से अमल सुनिश्चित करना जरूरी है।