आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी और भीड़-भाड़ के बीच भगदड़ एक सामान्य घटना बनती जा रही है। कभी धार्मिक सभाओं के आयोजन, रेल में चढ़ते वक्त, तो कभी मंदिरों में भगदड़ से लोगों की जान जा रही है। मगर, चिंता की बात है कि इन घटनाओं से कहीं कोई सबक नहीं लिया जाता। हर बार गहन जांच, सख्त कार्रवाई और भविष्य में एहतियाती उपाय करने के दावे तो किए जाते हैं, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही रहता है।
उत्तराखंड के हरिद्वार में मनसा देवी मंदिर क्षेत्र में रविवार को भगदड़ में आठ श्रद्धालुओं की मौत इसी लापरवाही का नतीजा है। हैरत की बात है कि इससे अगले ही दिन उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिले के अवसानेश्वर मंदिर में भी ऐसी ही घटना में दो लोगों की मौत हो गई। ऐसा लगता है कि भगदड़ का एक सिलसिला शुरू हो गया है और व्यवस्थागत खामियों की सिलवटें हैं कि ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही हैं।
पिछले दिनों महाकुंभ में भगदड़ मचने से अनेक लोग मारे गए। इसके बाद बंगलुरु में आरसीबी की जीत के जश्न में आयोजित समारोह में भगदड़ से कई लोगों की जान चली गई। इससे पहले हाथरस के एक आश्रम में हुई भगदड़ की घटना को भी नहीं भूलाया जा सकता। सवाल है कि आखिर ऐसी कितनी घटनाओं के बाद शासन और प्रशासन चेतेगा? मनसा देवी मंदिर में भगदड़ का कारण करंट फैलने की अफवाह को बताया जा रहा है। मगर, क्या इस तरह की अफवाह को हादसे में तब्दील होने से रोका नहीं जा सकता था? प्रशासनिक अमला इस तरह की आशंकाओं का अनुमान लगाने में इतना अक्षम क्यों है?
चिंता की बात यह है कि पूर्व की घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया जाता है। यही वजह है कि मनसा देवी मंदिर हादसे के दूसरे दिन पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के अवसानेश्वर मंदिर में भी भगदड़ की घटना हो गई। इसमें दोराय नहीं कि पर्यटन एवं धार्मिक स्थलों समेत सार्वजनिक जगहों पर लोगों की भीड़ आए दिन बढ़ रही है। ऐसे में शासन-प्रशासन को भीड़ प्रबंधन के उपायों को सख्ती से लागू करना होगा और लापरवाही बरतने वालों की जवाबदेही तय कर उनके खिलाफ उचित कार्रवाई अमल में लानी होगी। तभी व्यवस्था में सुधार की उम्मीद की जा सकती है।