अजीब दौर है यह। उन्माद फैला कर समाज में शांतिभंग कर देना जैसे कुछ लोगों का शगल बनता गया है। पटियाला का हिंसक संघर्ष इसका नया उदाहरण है। कुछ लोगों ने ‘खालिस्तान के स्थापना दिवस’ पर ‘सिख फार जस्टिस’ के बैनर तले जुलूस निकालने की योजना बनाई थी। इसके विरोध में शिव सेना (बाल ठाकरे) नाम का एक संगठन उतर आया और उसने ‘खालिस्तान मुर्दाबाद मार्च’ निकाल दिया।
स्वाभाविक ही दोनों गुटों में संघर्ष हुआ, पत्थर चले और कई लोग घायल हो गए। पुलिसकर्मी भी और आम नागरिक भी। इस पर पंजाब सरकार ने हिंसा रोकने के लिए कड़ाई की और कर्फ्यू लगाना पड़ा। गनीमत है कि यह संघर्ष देर तक नहीं चल पाया और पुलिस ने इस पर काबू पा लिया। मगर यह सवाल अब भी अनुत्तरित है कि आखिर इस संघर्ष की नौबत आई क्यों। खालिस्तान को लेकर शुरू हुआ आंदोलन अब अपनी त्वरा खो चुका है।
कुछ छिटपुट लोग कभी-कभार सिर उठाते देखे जाते हैं। विदेश में रह रहे कुछ लोगों पर आरोप लगता रहता है कि वे ‘सिख फार जस्टिस’ संगठन को सहयोग करते हैं। पंजाब में नई सरकार आने के बाद वह एकदम से इतना सक्रिय कैसे हो गया कि उसके लोगों ने स्थापना दिवस पर जुलूस निकालने की तैयारी कर ली। हैरानी की बात यह भी है कि पंजाब सरकार ने इसे पहले रोकने की कोशिश क्यों नहीं की।
पंजाब पाकिस्तान सीमा से सटा राज्य है, इसलिए इसे संवेदनशील माना जाता है। वहां सुरक्षा को लेकर ज्यादा चौकसी बरती जाती है। खुफिया एजंसियां हर समय सक्रिय रहती हैं। पर हैरानी है कि प्रशासन को पहले ही कैसे खालिस्तान समर्थकों के जुलूस की सूचना नहीं मिल पाई। सब जानते हैं कि खालिस्तान की मांग को लेकर पहले भीषण हिंसा हो चुकी है, जिसके चलते पूरा पंजाब वर्षों दहशत के साए में गुजार चुका है।
अब वहां के लोग खालिस्तान की मांग को किसी भी रूप में जायज नहीं मानते। हालांकि यह आशंका भी जताई जाती रही है कि सीमा पार से इस संगठन को उकसाने के प्रयास होते हैं। ऐसे में अगर वह संगठन फिर से सिर उठा रहा है, तो यह सबके लिए चिंता का विषय है। यह ठीक है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी की पहली बार सरकार बनी है, इसलिए उसे वहां कानून-व्यवस्था संभालने में कुछ अड़चनें आ रही होंगी। मगर इस तर्क पर भगवंत मान सरकार अपनी कमजोरियों पर परदा नहीं डाल सकती।
पंजाब चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगा था कि वे खालिस्तान आंदोलन से जुड़े लोगों के संपर्क में रहते हैं। इस आरोप का सीधे खंडन करने के बजाय उन्होंने घुमा-फिरा कर जवाब दिया था। अब अगर खालिस्तान के समर्थन में यह जुलूस निकला तो एक बार फिर उनका इस सवाल के घेरे में आना स्वाभाविक है।
सवाल है कि जो संगठन दहशतगर्दी के जरिए देश की अखंडता को भंग करने की कोशिश कर चुका हो, उसके प्रति किसी भी तरह की नरमी भला क्यों होनी चाहिए। भगवंत मान सरकार से इस मामले में भारी चूक हुई या वह इस मसले पर निर्णय करने में देर कर गई, जिसके चलते हिंसक झड़प की नौबत आ गई। उस वक्त जिस तरह से पत्थर चले, कोई बड़ी घटना भी हो सकती थी। यह घटना फिर से न दोहराई जा सके, इसे लेकर पंजाब सरकार को अतिरिक्त रूप से सतर्क रहना होगा।