आज बहुत सारे कामों के लिए स्मार्टफोन और कंप्यूटरों पर निर्भरता बढ़ती गई है। मगर इसका एक पहलू यह भी है कि आज ज्यादातर लोग जिस तरह स्मार्टफोन में खोए रहते हैं, वह इसकी उपयोगिता के बरक्स एक विरोधाभासी स्थितियां पैदा कर रहा है। चिंता की बात यह है कि शहरों-महानगरों में ऐसे तमाम बच्चे हैं, जिनकी सुबह मोबाइल के स्क्रीन के साथ होती है, उनका ज्यादातर वक्त उसी के साथ कटता है। ऐसे में बच्चों की मानसिक और शारीरिक सेहत पर पड़ने वाले असर का अंदाजा लगाया जा सकता है।
सीखने की क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ता है
इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन की एक रपट में भी यह साफ कहा गया है कि मोबाइल या स्मार्टफोन के नजदीक रहने से विद्यार्थियों का ध्यान भंग होता है और उससे सीखने की क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ता है। यूनेस्को के मुताबिक, विद्यार्थी अगर निश्चित सीमा से ज्यादा स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं तो इससे उनके शैक्षणिक प्रदर्शन में बाधा आती है।
गौरतलब है कि आज बहुत सारे घरों में बच्चों को जरूरत के तर्क पर स्मार्टफोन तक आसान पहुंच तो दी गई है, लेकिन ज्यादातर बच्चों का बहुत सारा वक्त अब मोबाइल के स्क्रीन में कटता है। इससे न केवल उनकी पढ़ाई-लिखाई की सहजता और ज्ञान की ग्राह्यता बाधित हो रही है, बल्कि उनके स्वभाव में भी बदलाव दर्ज किए जा रहे हैं। कई बच्चे स्मार्टफोन का उपयोग किसी लत की तरह करते हैं और मना करने पर उनके भीतर अस्वाभाविक प्रतिक्रिया देखी गई है। इसके मानसिक प्रभावों के समांतर ही ज्यादा समय तक मोबाइल के स्क्रीन में खोए रहने से शारीरिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।
इसमें नींद से लेकर खानपान की आदत में बदलाव हो सकता है। मोटापा बढ़ने और शारीरिक सक्रियता में भी कमी आ सकती है, जो सेहत के अन्य पहलुओं को प्रभावित करता है। बच्चों पर इसके गंभीर असर को देखते हुए ही दुनिया के कई देशों ने स्कूलों में स्मार्टफोन के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। आधुनिक तकनीकों के उपयोग की सीमा वही होनी चाहिए, जिससे मनुष्य के मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य की गुणवत्ता बेहतर हो, न कि उसके असर से वह धीरे-धीरे छीजने लगे।