मगर कई मामलों में देखा जाता है कि मीडिया अपनी समांतर अदालत लगाकर उस पर फैसला सुनाने का प्रयास करता है। इससे निश्चित रूप से अदालती कार्यवाही में बाधा उपस्थित होती और जन मानस गुमराह होता है। इस प्रवृत्ति पर लंबे समय से अंगुलियां उठती रही हैं। मगर इसका यह अर्थ कतई नहीं लगाया जा सकता कि मीडिया केवल प्रेस विज्ञप्तियों के आधार पर खबरें प्रकाशित-प्रसारित करे।

मामलों की तह तक जाने के लिए तमाम पत्रकार तरह-तरह से खोजबीन करते हैं, जो कि उनका धर्म भी है। उससे कई बार छिपाए जा रहे तथ्य उजागर होते हैं और अदालतों को असलियत तक पहुंचने में मदद मिलती है। मगर आबकारी नीति घोटाले के मद्देनजर एक आरोपी की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि मीडिया केवल सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जारी विज्ञप्तियों के आधार पर ही खबरें बनाए। याचिकाकर्ता का कहना था कि जांच एजेंसियों द्वारा इस मामले से जुड़ी संवेदनशील सूचनाएं मीडिया को चोरी-छिपे उपलब्ध कराई जा रही हैं, जिससे आरोपी के रूप में उनके अधिकार प्रभावित हो रहे हैं।

दरअसल, दिल्ली सरकार की आबकारी नीति में कथित घोटाले का मामला केंद्र और राज्य सरकार के बीच राजनीतिक खींचतान में उलझ गया है, इसलिए इसकी जांच पर भी कई बार संदेह जताए जा चुके हैं। आम आदमी पार्टी को लगता है कि जांच एजेंसियां केंद्र सरकार के इशारे पर काम कर रही हैं। मगर अपनी राजनीतिक पक्षधरता की वजह से कोई आरोप लगाए तो उसे कितनी गंभीरता से लिया जाना चाहिए, यह अदालतें अच्छी तरह जानती हैं।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जब भी कोई महकमा प्रेस विज्ञप्ति जारी करता है, उसकी जवाबदेही भी उस पर होती है, जबकि चोरी-छिपे या किसी बुरे इरादे से मीडिया को सूचनाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, तो उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं कही जा सकती। आजकल कुछ पत्रकार जरूर सनसनीखेज सूचनाएं प्रकाशित या प्रसारित कर अपना नाम चमकाने का प्रयास करते देखे जाते हैं।

विचित्र है कि ऐसे लोगों के खिलाफ निगरानी रखने वाले संगठन भी कोई कड़ा कदम नहीं उठाते। ताजा मामले में इसके लिए दिल्ली उच्च न्यायालय ने न्यूज ब्राडकास्टिंग एंड डिजिटल स्टैंडर्ड्स अथारिटी यानी एनबीडीए को भी फटकार लगाई है। इस तरह अब मीडिया केवल वही खबरें छापने या दिखाने को बाध्य है, जो जांच एजेंसियां प्रेस विज्ञप्ति के जरिए उपलब्ध कराएंगी।

मगर सवाल है कि इस आदेश के बाद मीडिया की खोजी पत्रकारिता की स्वतंत्रता का क्या होगा? क्या इससे यह ध्वनित नहीं होता कि मीडिया केवल प्रेस विज्ञप्तियों के आधार पर पत्रकारिता करे? इस तरह तो आरोपियों ने जो तथ्य छिपा रखे हैं उन्हें उजागर करने की जिम्मेदारी मीडिया निभा ही नहीं पाएगा! यह ठीक है कि खोजी पत्रकारिता के नाम पर मीडिया को किसी का मान-मर्दन करने का अधिकार नहीं मिल जाता, मगर पहले से ही कोई आरोपी यह कैसे तय कर सकता है कि उसके खिलाफ मीडिया गलत इरादे से छानबीन कर रहा है।

ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं, जब सबूतों को मिटा और गवाहों को अपने पक्ष में करके मामलों को हल्का करने का प्रयास किया गया, मगर मीडिया ने हकीकत उजागर की और उनके आधार पर अदालतें सही निर्णय तक पहुंच सकीं। इसलिए मीडिया को केवल प्रेस विज्ञप्ति की पत्रकारिता करने को बाध्य नहीं किया जाना चाहिए।