गुरुवार को जारी शिक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना के दौर में यानी 2020-21 में देश भर में बीस हजार से ज्यादा स्कूल बंद हो गए और पिछले साल के मुकाबले शिक्षकों की तादाद में करीब दो फीसद की गिरावट दर्ज की गई। भारत में स्कूली शिक्षा के लिए एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली प्लस की रिपोर्ट में यह उजागर हुआ है कि करीब एक लाख नवासी हजार, यानी शिक्षकों की कुल संख्या के दो फीसद कार्यबल से बाहर हो गए।

इसके अलावा, आर्थिक तनाव की वजह से पहले वर्ष की तुलना में दूसरे वर्ष में लगभग दोगुना विद्यार्थियों ने निजी स्कूल छोड़ कर सरकारी स्कूलों की ओर रुख कर लिया। देश के विकास में शिक्षा की अहमियत हर कोई समझता है और अगर किसी वजह से भारी तादाद में स्कूलों के बंद होने की हालत पैदा हो रही है, तो निश्चित रूप से यह शिक्षा के मोर्चे पर चिंता पैदा करने वाली बात है।

मंत्रालय की रिपोर्ट के आंकड़े औपचारिक आकलन के दौरान दस्तावेजों में दर्ज आधिकारिक ब्योरों के मुताबिक है। इसके अलावा भी प्रभावित परिवारों में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को लेकर निराशाजनक तस्वीर बनी है। सच यह है कि पिछले करीब तीन साल से देश और दुनिया में जो हालात रहे हैं, उसमें पढ़ाई से दूर होने वाले बच्चों के परिवारों के सामने विकल्प लगातार कम होते गए हैं।

हालत यह है कि महामारी की घोषणा के बाद लगी पूर्णबंदी के दौरान व्यापक पैमाने पर जिस तरह लोगों की आमदनी और रोजी-रोटी पर विपरीत असर पड़ा, उससे प्रभावित ज्यादातर परिवारों में सबसे पहले बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को ही बाधा पहुंची। आमदनी कम होने की वजह से बड़ी संख्या में बच्चों ने या तो स्कूल छोड़ दिया या फिर फीस आदि खर्च वहन नहीं कर पाने के चलते निजी स्कूल छोड़ कर सरकारी स्कूलों में दाखिला ले लिया।

रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान जहां सरकारी स्कूलों में दाखिले के आंकड़े में 83.35 लाख तक की बढ़ोतरी हुई। इसके उलट निजी स्कूलों में 68.85 लाख तक बच्चे कम हुए। ऐसे में बहुत सारे निजी स्कूलों के बंद होने और शिक्षकों की नौकरी जाने की वजह समझी जा सकती है।

दरअसल, महामारी से बचाव के लिए पूर्णबंदी को जिस तरह लागू किया गया था, उसका असर बहुआयामी था। एक ओर संक्रमण से बचाव के लिए स्कूल बंद हो रहे थे, दूसरी ओर एक बड़ी आबादी का रोजगार बुरी तरह प्रभावित हुआ। वहीं बीमारी के मद्देनजर स्कूल बंद होने की भरपाई के लिए आनलाइन पढ़ाई-लिखाई को मुख्य माध्यम बनाया गया, जिसका असर भी कमजोर पृष्ठभूमि के वैसे परिवारों पर पड़ा, जो पहले ही आर्थिक संकट का सामना कर रहे थे और अपने हर बच्चे के लिए स्मार्टफोन या कंप्यूटर की व्यवस्था करने में सक्षम नहीं थे।

इन हालात में स्कूलों के बंद होने से लेकर बीच में पढ़ाई छोड़ने की स्थितियां पैदा हुर्इं। अब देश कोरोना से उबर कर आगे निकलने की कोशिश में है तो सबसे ज्यादा जरूरत शिक्षा का मोर्चा संभालने की जरूरत है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि किसी भी देश का भविष्य शिक्षा पर ही निर्भर है।