तीन दिन बाद भारत और पाकिस्तान के सुरक्षा सलाहकारों के बीच आतंकवाद के मसले पर बातचीत होनी है। मगर एक बार फिर पाकिस्तान की तरफ से इसमें अड़चन पैदा होती दिख रही है। भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त ने कश्मीर के अलगाववादी हुर्रियत नेताओं को पाकिस्तानी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज से मिलने का न्योता भेजा गया है। इस पर स्वाभाविक ही भारत ने नाराजगी जाहिर की है।

पिछले साल भी जब दोनों देशों के विदेश सचिवों के बीच शांति वार्ता तय थी, पाकिस्तान के उच्चायुक्त ने हुर्रियत नेताओं से बातचीत की थी। इस साल रूस के उफा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच हुई मुलाकात में तय हुआ था कि दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दिल्ली में आतंकवाद से निपटने को लेकर बातचीत करेंगे। मगर नवाज शरीफ के देश वापस लौटते ही सरताज अजीज ने कहा था कि भारत पहले कश्मीर मसले को सुलझाए, फिर दूसरे मुद्दों पर बातचीत की पहल करे।

इस्लामाबाद में होने जा रही राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की बैठक में जम्मू-कश्मीर विधानसभा के अध्यक्ष को न बुलाए जाने के पीछे भी उसका मकसद यही जताना था कि वह कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानता। इसी कड़ी में एक दिन पहले पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में अपील की कि कश्मीर मसले को सुलझाने में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की जाए। समझना मुश्किल नहीं है कि आतंकवाद के मुद्दे से ध्यान हटाने के मकसद से पाकिस्तान ऐसी अड़चनें डालने का प्रयास करता रहा है।

दरअसल, पिछले कुछ महीनों में पाकिस्तान में आतंकवादी संगठनों को मिल रही शह को लेकर भारत को ऐसे सबूत हाथ लगे हैं, जिन्हेंवह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक में रखने वाला है। गुरदासपुर और ऊधमपुर में हुए आतंकी हमलों में पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों का हाथ उजागर है। ऊधमपुर में पकड़े गए आतंकी ने बहुत सारी सूचनाएं दी हैं। फिर इसी महीने मुंबई हमले के मुख्य जांचकर्ता तारिक खोसा ने लेख लिख कर पाकिस्तान के दोहरे रवैए की पोल खोली थी। उसमें उन्होंने बहुत सारे तथ्य उजागर किए थे। पाकिस्तान उनसे आंख चुरा रहा है।

ऐसे में वह आतंकवाद के बजाय कश्मीर का मुद्दा उठा कर शांति प्रयासों में खलल डालने का प्रयास करता दीख रहा है। सीमा पर लगातार संघर्ष विराम का उल्लंघन हो रहा है, पर पाकिस्तान उलटा भारत पर दोष मढ़ कर खुद को सही साबित करने पर तुला है। वह इस बात को भी नजरअंदाज कर रहा है कि आतंकवाद के चलते केवल भारत को नहीं, खुद उसे भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। तीन दिन पहले ही एक आतंकवादी संगठन ने हमला कर पंजाब प्रांत के गृहमंत्री की हत्या कर दी! अच्छी बात है कि भारत ने इस बार हुर्रियत नेताओं को न्योता भेजे जाने पर तत्काल कोई तल्ख कदम नहीं उठाया। आखिर शांति बहाली का प्रयास उसी की तरफ से किया जा रहा है, इसलिए उससे उदारता की अपेक्षा स्वाभाविक है। पिछली बार की तरह इस बार भी तनातनी में बैठक रद्द होगी, तो उसका कोई सकारात्मक संकेत नहीं जाएगा।

 

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