प्रयागराज महाकुंभ को लेकर जितना प्रचार-प्रसार किया गया, उत्तम व्यवस्था के जैसे दावे किए गए, जितनी भारी रकम खर्च करने के ब्योरे पेश किए गए, अब लगता है कि वह सब ढिंढोरा पीटने जैसा था। हकीकत में, अव्यवस्थाएं ही अधिक दर्ज हो रही हैं। इसमें लोगों के आने-जाने, रुकने-ठहरने, नहाने वगैरह के दौरान जो दुश्वारियां झेलनी पड़ीं, लोगों को घंटों गाड़ियों में कैद होकर सड़कों पर गुजारना पड़ा, रेलों में ठुंस-ठुंसा कर जैसे तैसे सफर करना पड़ा, भगदड़ में जो जानें गईं, पंडालों में आग लगने की घटनाएं हुईं उन सबसे अलग चिंता की बात यह है कि संगम क्षेत्र में गंगा और यमुना का पानी नहाने लायक था ही नहीं।

उससे त्वचा रोग और दूसरी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होने के खतरे बताए जा रहे हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण को अपनी रपट में बताया है कि संगम क्षेत्र में अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग दिन लिए गए पानी के नमूनों में गुणवत्ता बहुत खराब दर्ज हुई है। उसमें मानव और पशु मल-मूत्र से पैदा होने वाले ‘फेकल कोलीफार्म’ नामक जीवाणु की अत्यधिक मात्रा पाई गई है। इस तथ्य को गंभीरता से लेते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी एनजीटी ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एक हफ्ते के भीतर रपट तलब की है।

महाकुंभ के स्रान शुरू होने से पहले ही दिया गया था निर्देश

हालांकि राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने महाकुंभ के स्रान शुरू होने से पहले ही निर्देश दिया था कि गंगा और यमुना के पानी की गुणवत्ता लोगों के नहाने लायक सुनिश्चित होनी चाहिए। मगर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ताजा रपट से तो यही जाहिर होता है कि एनजीटी के निर्देशों को गंभीरता से नहीं लिया गया। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कहना है कि संगम क्षेत्र में बड़ी संख्या में स्नान करने की वजह से ‘फेकल कोलीफार्म’ की मात्रा बढ़ गई। मगर यह दलील किसी के गले नहीं उतर रही।

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महाकुंभ से पहले संगम क्षेत्र में गंगा और यमुना का पानी स्वच्छ करने के खूब दावे किए गए। सरकार खुद बता रही थी कि महाकुंभ में चालीस करोड़ से अधिक लोगों के पहुंचने की संभावना है और सौ करोड़ लोगों को ध्यान में रखते हुए व्यवस्थाएं की गई हैं। फिर, कैसे संगम क्षेत्र में पानी की सफाई को लेकर ऐसी लापरवाही बरती गई कि लोगों में बीमारी फैलने की आशंका जताई जाने लगी है!

गंदे नालों में शोधन यंत्र लगाने की थी जरूरत

यह छिपी बात नहीं है कि तीर्थ स्थलों पर पूजा सामग्री आदि की वजह से तो गंदगी फैलती है, मगर वह वैसी खतरनाक नहीं होती, जैसी ‘फेकल कोलीफार्म’ के कारण हो सकती है। सब जानते हैं कि शहरों की गंदगी बिना शोधन के नदियों में गिरा दी जाती है। महाकुंभ में ऐसे गंदे नालों में शोधन यंत्र लगाने की जरूरत थी। पर शायद पर्याप्त मात्रा में नहीं लगाए जा सके। ऐसे पावन पर्वों पर बहुत सारे लोग स्नान के साथ आचमन भी करते हैं, नदी जल पीते हैं।

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इसलिए ज्यादा चिंता की बात है कि न जाने कितने लोगों को संक्रमण हो सकता है। जाहिर-सी बात है कि जिस तरह उत्तर प्रदेश सरकार महाकुंभ के आयोजन में रह गई खामियों को किसी न किसी तरह ढंकने-छिपाने का प्रयास कर रही है, संगम क्षेत्र में फैले जल-प्रदूषण के तथ्य को भी छिपाने का प्रयास करेगी। मगर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रपट से महाकुंभ के आयोजन में अव्यवस्था की एक और चिंताजनक परत उघड़ गई है।