रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध थमता नजर नहीं आ रहा है। यूक्रेन के रिहाइशी इलाकों में भी बम और मिसाइलों से हमले हो रहे हैं। मगर विडंबना है कि इस युद्ध में वैसी जगहों को भी निशाना बनाया जा रहा है, जहां किसी भी हाल में हमला नहीं किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि कीव में गत सोमवार को बच्चों के एक अस्पताल समेत शहर की कुछ अन्य इमारतों पर हमले हुए, जिनमें कई लोगों की जान चली गई। यूक्रेन का दावा है कि बच्चों के अस्पताल पर रूसी सेना ने मिसाइल से हमला किया। हालांकि, रूस ने कहा कि यूक्रेन की वायु रक्षा प्रणाली से छोड़ी गई मिसाइल ही अस्पताल पर गिरी है। दोनों देशों के ये दावे-प्रतिदावे अपनी जगह हैं, लेकिन क्या युद्ध के दौरान अस्पताल जैसे संस्थानों पर हमले करना वाजिब है? अस्पताल बीमार और घायलों को नया जीवन देने का काम करते हैं। यहां तक कि युद्ध में घायल सैनिकों की आखिरी उम्मीद भी उपचार के लिए इन्हीं जगहों पर टिकी होती है।
गौरतलब है कि कीव में यह हमला अमेरिका में होने वाले तीन दिवसीय नाटो शिखर सम्मेलन से ठीक एक दिन पहले हुआ। इस सम्मेलन में रूस-यूक्रेन युद्ध पर भी चर्चा होने की संभावना है। यूक्रेन में युद्ध के दौरान आम नागरिकों के हताहत होने का अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन भी कड़ाई से विरोध कर रहा है। उसका कहना है कि युद्ध में मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर और जेनेवा समझौते के अनुसार युद्ध के दौरान आम नागरिकों और रिहाइशी इलाकों, खासकर अस्पतालों और पनाहगाहों पर जानबूझकर हमला करना प्रतिबंधित है। ऐसी कार्रवाइयों को युद्ध अपराध की श्रेणी में माना जाता है। सवाल है कि क्या युद्ध के दौरान इन अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन सुनिश्चित किया जाता है? जिन देशों ने मिलकर ये नियम तय किए हैं, अगर वे खुद इनका खयाल नहीं रखेंगे तो भविष्य में भी इस तरह की कवायदों का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कायदे-कानून बनाने का मकसद वैश्विक समाज की सुरक्षा और बेहतरी पर केंद्रित होता है। यह मकसद तभी सफल हो पाएगा, जब तमाम देश आम सहमति से हुए फैसलों का सम्मान करेंगे।