दिल्ली के रोहिणी इलाके में स्थित एक झुग्गी बस्ती में लगी आग फिर यह बताने के लिए काफी है कि हर मोर्चे पर चौकसी और व्यवस्था को दुरुस्त रखने के सरकारी दावों की हकीकत क्या है! विडंबना है कि सभी पार्टियां विपक्ष में रहते हुए सरकार पर बदइंतजामी के आरोप लगाती रहती हैं, मगर वही सत्ता में आने के बाद जनता को उसके हाल पर छोड़ देती हैं। गौरतलब है कि रोहिणी में रविवार को अचानक लगी आग में करीब आठ सौ झुग्गियां जल कर राख हो गईं।

अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसमें रहने वाले लोगों के जीवन में कैसा तूफान आ गया होगा, क्योंकि उसमें ज्यादातर परिवारों का सब कुछ जल गया और उनके सामने अब गुजारा करने तक की मुश्किल आ गई है। खबरों के मुताबिक, सूचना दिए जाने के बावजूद अग्नि शमन सेवा के वाहन काफी देर से पहुंचे, जिससे आग की भयावहता और बढ़ गई। हालांकि बस्ती में संकरे रास्तों की वजह से दमकल को अंदर पहुंचने में मुश्किल हुई, जिससे समस्या और बढ़ी।

सवाल है कि जिस वक्त ऐसी झुग्गी बस्तियां बस रही होती हैं, उस समय वे सरकारी महकमे क्या कर रहे होते हैं, जो आग लगने के बड़े हादसों के बाद व्यवस्थागत कारणों का लेखा-जोखा पेश करते हैं। ऐसी बस्तियों में आने-जाने के रास्ते, बिजली-पानी का प्रबंध, किसी बड़े हादसे के वक्त आग बुझाने या अन्य तरीकों से मदद पहुंचाने के उपायों को लेकर शायद ही कभी उनमें कोई सरोकार देखा जाता है। यह बेवजह नहीं है कि गरीब-वंचित तबकों के लोगों की रिहाइश पर हर वक्त खतरा मंडराता रहता है।

किसी भी हादसे का सबक यह होना चाहिए कि भविष्य के लिए ऐसे इंतजाम किए जाएं, ताकि उस तरह की घटना फिर न हो। विडंबना यह है कि दिल्ली में आए दिन किसी न किसी इलाके में आग लगने और उसमें भारी नुकसान की खबरें आती रहती हैं और हर बार उसकी जड़ में आमतौर पर संबंधित महकमों की लापरवाही होती है। अगर आग लगने की स्थिति में बचाव के इंतजाम सुनिश्चित कर दिए जाएं और समय-समय पर उनका निरीक्षण हो, तो बड़े हादसों से बचा जा सकता है।