देश में बेहतरीन सड़कें बनाने के दावे के बावजूद आज भी कई सड़कें इतनी असुरक्षित क्यों हैं कि उन पर हादसों की आशंका बनी रहती है। कई राज्यों में ऐसी सड़कें हैं, जिनका वर्षों से रखरखाव नहीं हुआ और उन पर सफर करना एक जोखिम से गुजरना है। यह दुखद है कि राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा नीति के बावजूद भारत में सड़क हादसे कम नहीं हो रहे हैं। आज सड़कों पर पैदल चलने वालों तक के लिए जगह नहीं बची है।

दोपहिया चालक अक्सर जोखिम में रहते हैं। सड़क निर्माण में भारतीय कौशल से इनकार नहीं किया जा सकता, बावजूद इसके हमारी सड़कें दुनिया में सबसे खतरनाक हैं, तो इसकी वजह क्या है? सड़कों पर अगर जीवन संकट में पड़ने लगे, तो इसका मतलब है कि जीवन जीने का अधिकार सचमुच खतरे में है। इसी चिंता को चिह्नित करते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि वाहन चलाने योग्य सुरक्षित और अच्छे रखरखाव वाली सड़क संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन जीने के अधिकार का एक हिस्सा है।

सड़कें सुरक्षा मानदंडों पर खरी नहीं उतरतीं

दरअसल, अधिकतर राज्यों में लोक निर्माण विभाग खुद सड़कें नहीं बनाता। प्राय: निविदाएं जारी कर ठेकेदारों को जिम्मा सौंप दिया जाता है। नतीजा यह कि सड़कें सुरक्षा मानदंडों पर खरी नहीं उतरतीं।

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मध्य प्रदेश सड़क विकास निगम और निजी कंपनी के बीच विवाद की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी को गंभीरता से लेने की जरूरत है कि सड़क का जिम्मा निजी ठेकेदार पर छोड़ने के बजाय सरकार को यह काम सीधे अपने नियंत्रण में रखना चाहिए।

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सड़कें जीवन के अधिकार का हिस्सा हैं, तो इसका गुणवत्तापूर्ण निर्माण और इसकी समुचित देखरेख निस्संदेह सरकार का दायित्व है। आज जिस तरह सड़कों पर वाहनों का बोझ बढ़ा है, इसे देखते हुए सड़कों की देखभाल की जरूरत स्वाभाविक रूप से बढ़ गई है।

मानवीय भूल अपनी जगह हैं, लेकिन कई स्थानों पर यातायात संकेतक न होने और सड़कों पर दरारें पड़ने और धंसाव ने भी समस्या बढ़ाई है। सड़कों के निर्माण में अधिकतर त्रुटियां खराब अभियांत्रिकी के कारण ही सामने आई हैं। जरूरत इस बात की है कि नागरिकों के जीवन जीने के अधिकार को बिना किसी बाधा के सुनिश्चित करने के लिए सरकार हर स्तर पर जिम्मेदारी तय करे।