देश में जब राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण किया जा रहा था, तब यह उम्मीद जताई गई थी कि ये आवाजाही के सुगम और सुरक्षित मार्ग साबित होंगे। कई लेन में आने-जाने के लिए बनीं चौड़ी सड़कों ने तेज रफ्तार को मानो नए पंख दे दिए। कम समय में गंतव्य तक पहुंचने की चाह रखने वालों की बरसों पुरानी इच्छा पूरी हो गई। लोग कुछ ही घंटे में सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा पूरी करने लगे। मगर यह सुगम मार्ग सुरक्षित नहीं रहा। आज स्थिति यह है कि चालक गति सीमा तोड़ कर वाहन चलाने लगे हैं। इस दौरान वे कई नियमों की अनदेखी करते चले जाते हैं। नतीजा यह कि हादसे से बचने के लिए उन्हें ब्रेक लगाने तक का समय नहीं मिलता।
राजमार्गों पर अचानक ब्रेक लगाना न केवल चालक के लिए, बल्कि दूसरे वाहन चालकों के लिए भी जानलेवा बन जाता है। ऐसी सड़कों पर तेज रफ्तार और अचानक ब्रेक लेने से बढ़ रहे हादसों ने कई सवाल खड़े किए हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में कोयंबटूर में हुई एक दुर्घटना की सुनवाई के दौरान शीर्ष न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने अपने निर्णय में कहा है कि हाइवे पर बिना कोई चेतावनी दिए अचानक ब्रेक लगाना लापरवाही मानी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला लापरवाह चालकों के लिए कड़ी चेतावनी
इसमें कोई दोराय नहीं कि कोई वाहन चालक अगर राजमार्ग पर गाड़ी रोकना चाहता है, तो पीछे आ रही गाड़ियों को संकेत देना चाहिए। शीर्ष अदालत का कहना उचित है कि आपात स्थिति में भी कोई अचानक ब्रेक लगा देता है, तो यह गैर-जिम्मेदाराना है। सामान्य स्थितियों में यह जरूरी होना चाहिए कि तेज रफ्तार वाहन ब्रेक लगाने से पहले चेतावनी संकेत दें। यों यह भी सच है कि राजमार्गों पर तेजी से वाहन दौड़ा रहे चालक आमतौर पर दूसरी गाड़ियों से सुरक्षित दूरी बना कर नहीं चलते।
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यह एक सबसे खतरनाक स्थिति है। ‘हाइवे रोड सेफ्टी रपट 2021’ के मुताबिक राजमार्गों पर होने वाले सभी दुर्घटनाओं में 74.4 फीसद हादसे गति सीमा से अधिक वाहन चलाने के कारण होते हैं। स्पष्ट है कि राजमार्गों पर सुरक्षा मानदंडों की अनदेखी हो रही है। इन्हें और भी सख्त बनाने के साथ चालकों को भी जागरूक करने की अब जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला लापरवाह चालकों के लिए कड़ी चेतावनी है।