इस बार बिहार में लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल और नीतीश कुमार के जनता दल (एकी) का गठबंधन भारी बहुमत से सत्ता में आया तो कई लोगों ने आशंकाएं जतार्इं कि राज्य में कहीं फिर से लालू यादव सरकार के समय जैसा माहौल न बन जाए। तब दोनों दलों ने बिहार को अपराधमुक्त बनाने और विकास के रास्ते पर ले जाने का संकल्प दोहराया। मगर सत्ता में आते ही राजद के नेता अपने पुराने रंग में लौटते नजर आने लगे हैं। इसी की नई कड़ी पार्टी के एक विधायक पर नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार का आरोप और उसके फरार होने की घटना है।

बताया जाता है कि विधायक ने यौन व्यापार के कारोबार में शामिल एक महिला की मदद से लड़की को बहला-फुसला कर अपने घर बुलाया और दो दिन तक उसके साथ बलात्कार किया। मौका पाकर लड़की वहां से निकल भागी और घटना की शिकायत दर्ज कराई। लड़की के मुताबिक इस काम के लिए विधायक ने यौन व्यापार में शामिल महिला से तीस हजार रुपए में सौदा किया था। प्रारंभिक जांच में पुलिस ने आरोपों को काफी हद तक सही पाया और विधायक को गिरफ्तार करने की कोशिश शुरू कर दी। तब से विधायक लापता है। इस घटना के बाद पार्टी ने विधायक को प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया है। मगर सवाल है कि क्या इतने भर से पार्टी और बिहार सरकार के माथे पर लगा धब्बा साफ हो पाएगा।

जिस विधायक के खिलाफ बलात्कार के आरोप लगे हैं, उसकी छवि शुरू से दबंग की रही है। वह अनेक मामलों में आरोपी है। अगर पार्टी सचमुच अपनी साफ-सुथरी छवि के प्रति गंभीर होती तो उसे प्रत्याशी बनाने से पहले जरूर विचार किया होता। अब बलात्कार के मामले में किरकिरी शुरू हुई तो उसे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना उसकी मजबूरी हो गई। लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी पर बहुत पहले से आरोप लगते रहे हैं कि उन्होंने बाहुबलियों को शरण दे रखी है और जब उनकी पार्टी सत्ता में होती है तो ये लोग खुलेआम अपराध करते फिरते हैं। लोगों में भय का माहौल पैदा कर अपना प्रभाव जमाना इनकी फितरत है।

मगर लगता है, लालू प्रसाद यादव ने कभी इन आरोपों से मुक्त होने की जरूरत नहीं समझी। समाज के पिछड़े और निचले तबके की रहनुमाई का दम भरते हुए सत्ता तक पहुंचने वाली राजद के प्रतिनिधि इस तबके की तकलीफ दूर करने के बजाय अपनी ताकत बढ़ाने को ही प्राथमिकता देते नजर आए। जब देश भर में बलात्कार जैसी शर्मनाक प्रवृत्ति को रोकने के लिए कड़े कानून बनाने से लेकर, जनजागरूकता अभियान चलाने की कोशिशें हो रही हैं, एक जनप्रतिनिधि खुद ऐसा आचरण करता पाया जाता है तो भला इस समस्या से पार पाने में कामयाबी की कितनी उम्मीद की जा सकती है। उसके इस आचरण से नीचे के नेताओं पर कैसा असर पड़ता होगा, समझना मुश्किल नहीं है। संतोष की बात है कि बिहार पुलिस ने बिना किसी दबाव में आए इस घटना को गंभीरता लिया, सरकार और राजद की तरफ से भी इस पर परदा डालने की कोशिश नहीं की गई। मगर इस घटना के बाद सरकार और राजद दोनों को यह सख्त संदेश देने की जरूरत है कि अगर प्रतिनिधियों ने अपने आचरण पर ध्यान नहीं दिया तो उनके खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएंगे।