पिछले कई वर्षों से आम आदमी महंगाई से बेहाल है। उसकी क्रय शक्ति काफी हद तक प्रभावित हुई है। मगर अब यह स्थिति बदल सकती है। भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक नीतियों में फेरबदल कर महंगाई को काबू में करने के जो उपाय करता रहा है, उसका असर दिखाई देने लगा है। मंगलवार को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार खुदरा महंगाई दर बीती जुलाई में घट कर 1.55 फीसद रह गई। यह पिछले आठ साल में सबसे कम है। गौरतलब है कि जून 2017 में जो महंगाई दर दर्ज की गई थी, उस समय यह आंकड़ा 1.46 फीसद था। खुदरा महंगाई में गिरावट आम लोगों के लिए बड़ी राहत है।

हमारी अर्थव्यवस्था पर भी इसका बेहतर प्रभाव पड़ेगा। मगर सवाल यह है कि क्या भविष्य में भी महंगाई काबू में रहेगी। जाहिर है इस पर निरंतर नजर रखने की जरूरत होगी। फिलहाल मानसून के दौरान अधिक बारिश, जलाशयों में पर्याप्त जल स्तर और खरीफ की अच्छी बुवाई से कृषि पैदावार बेहतर होने से खाद्य पदार्थों की कीमतों में स्थिरता की उम्मीद की जा सकती है। मगर इस समय खाद्य तेलों के बार-बार बढ़ते मूल्यों पर भी अंकुश लगाने की जरूरत है। इनके दाम पिछले महीने भी बढ़े हैं।

मार्च में खुदरा महंगाई दर घटकर 3.34 फीसदी हुई, खाने-पीने के सामान के दाम घटने का असर

कोई दो राय नहीं कि आम नागरिकों का जीवन सुधारने और उनकी क्रय शक्ति बनाए रखने के लिए महंगाई पर स्थायी नियंत्रण होना चाहिए। मुद्रास्फीति में नरमी आंकड़ों में नहीं, बाजारों में दिखनी चाहिए ताकि लोगों को लगे कि उपभोक्ता वस्तुओं और खाद्य पदार्थों के दाम वास्तव में घटे हैं। अनुमान लगाया जा सकता है कि खुदरा महंगाई में नरमी को देखते हुए रिजर्व बैंक की मौद्रिक समिति अपनी अगली समीक्षा बैठक में रेपो दर यथावत रख सकती है, लेकिन यह भी तय है कि मौद्रिक नीति का रुख इस बात पर भी निर्भर करेगा कि महंगाई किसी दिशा में जाती है।

मौजूदा भू-राजनीतिक तनाव के बीच सजग रहना होगा। उम्मीद कर सकते हैं कि उपभोक्ता मांग बढ़ेगी। लोग खरीदारी के लिए प्रोत्साहित होंगे। खुदरा महंगाई घटने का सकारात्मक असर लोगों के जीवन पर पड़ेगा।