यह पहली बार नहीं हुआ कि डांस बार मामले में महाराष्ट्र सरकार को अदालत की फटकार सुननी पड़ी हो। दरअसल, यह मामला अदालत के हस्तक्षेप और सरकार की सख्ती के बीच बरसों से झूलता रहा है। राज्य सरकार का तर्क अश्लीलता को रोकने का रहा, तो अदालत ने आजीविका के अधिकार का पक्ष लिया है। सर्वोच्च न्यायालय की ताजा फटकार से साफ है कि डांस बार न चलने देने की महाराष्ट्र सरकार की कोशिशें नाकाम साबित हुई हैं। इस मामले में सोमवार को सर्वोच्च अदालत ने कहा कि सड़कों पर भीख मांग कर या किसी अन्य गलत तरीके से जिंदगी बिताने से बेहतर है डांस करना; डांस से पैसा कमाना गलत तरीके से पैसा कमाने से बेहतर है। यह टिप्पणी जहां महाराष्ट्र सरकार के रवैए के प्रति उसकी नाराजगी को दर्शाती है वहीं नैतिकता के प्रश्न को एक ज्यादा व्यापक परिप्रेक्ष्य में रखती है।

अदालत की नाराजगी का ताजा सबब यह है कि नियमन के नाम पर राज्य सरकार ने ऐसे नियम बना दिए कि डांस बार को लाइसेंस मिलना लगभग असंभव हो जाए। महाराष्ट्र में डांस बार पर प्रतिबंध की शुरुआत 2005 में हुई थी। तब कांग्रेस और राकांपा की साझा सरकार थी। एक साल बाद पाबंदी के विधेयक को मुंबई हाईकोर्ट ने गैर-कानूनी करार दिया। वर्ष 2013 में सर्वोच्च अदालत ने मुंबई हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया। फिर 2014 में तब के महाराष्ट्र के गृहमंत्री आरआर पाटील ने डांस बार पर प्रतिबंध के लिए नया कानून बनाने की पहल की। पर वह भी न्यायिक समीक्षा में टिक नहीं सका।

राज्य के डांस बार मालिकों की याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत ने कहा कि सरकार की चिंता अगर अश्लीलता को लेकर है, तो वह नियमन के नियम बना सकती है, पर डांस बार को प्रतिबंधित नहीं कर सकती। लेकिन हुआ यह कि फिर राज्य सरकार ने नियमन के नियम ही इतने सख्त बना दिए कि वे प्रतिबंध के पर्याय जैसे हो गए। मसलन, यह फरमान जारी कर दिया कि किसी भी शैक्षिक संस्था या पूजास्थल के एक किलोमीटर के इर्दगिर्द डांस बार नहीं खुल सकता।

इसी तरह के और कई कड़े नियम लागू कर दिए। फलस्वरूप पुलिस से लाइसेंस पाना डांस बार मालिकों के लिए बहुत ही मुश्किल हो गया। इसीलिए अदालत ने कहा है कि प्रतिबंध और नियमन में फर्क होता है। आखिर क्यों राज्य सरकार का रवैया पहले प्रतिबंध लगाने और फिर उसकी कोशिश नाकाम हो जाने पर आनाकानी का रहा है। असल में कांग्रेस व राकांपा और भाजपा-शिवसेना, सबके लिए यह मामला नैतिकता की रक्षा में अधिक फिक्रमंद दिखने का रहा है और इस होड़ में डांस बार पर प्रतिबंध एक लोकलुभावन मुद्दा बनता गया।

यही कारण है कि प्रतिबंध के इरादे से लाया गया विधेयक सर्वसम्मति से पारित हुआ था। पर इन पार्टियों को राजनीति में नैतिकता की फिक्र कितनी है? प्रतिबंध के विरोधी इन पार्टियों के रवैए की ‘मोरल पोलिसिंग’ कह कर निंदा करते रहे हैं। इस बहस में डांस बार बालाओं के शोषण का मुद््दा दरकिनार ही रहा। जिनके लिए आजीविका का प्रश्न प्रमुख है, उन्होंने भी इस सवाल को नजरअंदाज कर दिया कि इन लड़कियों ने यह काम अपनी मर्जी से चुना था, या उन्हें फुसला कर या मजबूर करके इस धंधे में लाया गया?