अब केंद्र ने मॉल, सिनेमा हॉल और रेस्तरां को चौबीसों घंटे, सातों दिन खोलने संबंधी विधेयक को हरी झंडी दे दी है। यह विधेयक सभी राज्यों को भेजा जाएगा और वे इस आधार पर कानून बना सकेंगे। माना जा रहा है कि इस फैसले से खुदरा बाजार में तेजी आएगी। पिछले कुछ सालों में आॅनलाइन खरीदारी का चलन बढ़ा है, जिसके चलते खुदरा बाजार पर प्रतिकूल असर देखा गया है। केंद्र के ताजा फैसले से खुदरा बाजार के भी आॅनलाइन जैसा होने की उम्मीद जताई जा रही है। दरअसल, महानगरों की बदलती जीवन शैली और कामकाज के बदलते रंग-ढंग की वजह से कई मामलों में दिन और रात का अंतर समाप्त हो गया है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों, कल-कारखानों, कॉल सेंटरों, संचार माध्यमों, मनोरंजन उद्योग आदि में सातों दिन चौबीसों घंटे काम चलते रहने की वजह से महानगरों में लाखों लोगों का कार्य-समय अब वैसा नहीं रह गया है जैसा सरकारी दफ्तरों में होता है। इसलिए रात की पाली में या फिर देर रात तक काम करने वाले लोगों की आवाजाही और अन्य गतिविधियां दिन की अपेक्षा रात को अधिक रहती हैं। ऐसे में उन्हें खाने-पीने, खरीदारी करने, सिनेमा वगैरह जाने की जरूरत देर रात को होती है। काफी समय से मांग चल रही थी कि रेस्तरां आदि को देर रात तक खोलने की इजाजत होनी चाहिए। मगर सुरक्षा कारणों से इस पर फैसला करना कठिन बना हुआ था। हालांकि बड़े शहरों में रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों आदि के आसपास खान-पान की दुकानें रात भर खुली रहती हैं। शहरों के उन इलाकों में भी खाने-पीने की कुछ दुकानें हमेशा खुली देखी जाती हैं, जहां दिन-रात काम चलता रहता है। मगर शहर के बाकी हिस्सों में इसकी इजाजत नहीं होती। फिर राष्ट्रीय अवकाश, साप्ताहिक अवकाश और त्योहारों आदि पर भी आमतौर पर दुकानें बंद रखी जाती हैं। इसके चलते उपभोक्ता और दुकानदार, दोनों को दिक्कत पेश आती है। नया कानून बनने से जो लोग दिन-रात दुकानें खोले रखना चाहेंगे, खोले रख सकते हैं।
देश भर में छह सौ से अधिक बड़े शॉपिंग मॉल हैं, पैंतीस हजार से अधिक मझोले स्टोर, दस हजार से अधिक एक परदे वाले सिनेमा हॉल और दो लाख से ज्यादा रेस्तरां हैं। केंद्र के ताजा फैसले से इनके कारोबार में बढ़ोतरी के आसार हैं। मगर रात भर दुकानें वगैरह खोले रखने से सुरक्षा का मसला बना रहेगा। यह समस्या खासकर उन महिलाओं के सामने होगी जो मॉलों, रेस्तरां आदि में रात-पाली में काम करने जाएंगी। हालांकि सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कुछ नियम-कायदे बनाए हैं, पर उनका पालन किस हद तक किया जा सकेगा, देखने की बात है। कॉल सेंटरों आदि में देर रात को काम करके घर लौटते समय महिलाओं के साथ बदसलूकी की घटनाएं अक्सर सुनने को मिलती हैं। मॉलों आदि में काम करने वाली महिलाओं के साथ ऐसा नहीं होगा, दावा करना मुश्किल है। फिर सवाल यह भी है कि देर रात तक खुलने वाले मॉलों में रात को बिक्री कम होगी, उनका खर्च अधिक बैठेगा, तब वे रात को काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन-भत्ते आदि के मामले में कहीं भेदभाव न करें! इसलिए इस कानून को व्यवस्थित और व्यावहारिक रूप से लागू करने के लिए पहले किसी एक राज्य में प्रायोगिक तौर पर आजमा कर देखना और फिर अंतिम निर्णय पर पहुंचना ज्यादा ठीक होगा।