भारतीय रिजर्व बैंक ने फिर अपनी मौद्रिक नीति में कोई बदलाव करने से परहेज किया है। दसवीं बार रेपो दर को यथावत रखा गया है। फिलहाल वह साढ़े छह फीसद है। यह फैसला महंगाई पर काबू पाने के मकसद से किया गया है। रिजर्व बैंक ने अगले दो वित्त वर्षों में महंगाई के चार फीसद से ऊपर रहने का अनुमान लगाया है। नई मौद्रिक नीति की घोषणा करते हुए चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद की पहले की अनुमानित दर को कम किया गया है। स्वाभाविक ही रिजर्व बैंक के कदम अभी ठिठके हुए हैं।

रिजर्व बैंक का मानना है कि अगर महंगाई को चार फीसद से नीचे लाकर स्थिर करने में कामयाबी मिल जाती है, तो विकास दर दहाई के आंकड़े को छू सकती है। हालांकि दुनिया में जिस तरह के हालात हैं और बहुत सारे देश मंदी की मार झेल रहे हैं, उसमें भारत की अर्थव्यवस्था ने अपने को संभाल रखा है। यहां मंदी के झटके उस तरह नहीं लगे, जैसे कई विकसित कहे जाने वाले देशों में भी देखने को मिले। इस वक्त भारत दुनिया की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। ऐसे में रिजर्व बैंक ब्याज दरों में किसी भी तरह का परिवर्तन कर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता।

यह ठीक है कि रेपो दर में कोई बदलाव न होने से कर्ज लेकर घर, वाहन आदि खरीदने वालों पर किस्त चुकाने का बोझ नहीं बढ़ेगा। मगर हकीकत यह है कि फिलहाल रेपो दर अपने उच्च स्तर पर है। रेपो वह दर होती है, जिस पर रिजर्व बैंक दूसरे बैंकों को कर्ज देता है। इस तरह बुजुर्गों आदि को अपने बचत खाते की जमा राशि पर कुछ अधिक ब्याज मिल रहा है। मगर जिन लोगों ने कर्ज लिया हुआ है, उन पर पहले की तुलना में किस्तें बढ़ा कर चुकानी पड़ रही हैं।

लोगों पर किस्तों का बोझ भी बढ़ गया

करीब दो वर्ष पहले जब खुदरा महंगाई बढ़ कर सात फीसद के आसपास पहुंच गई थी, तब रिजर्व बैंक ने रेपो दरें बढ़ानी शुरू की थी। थोड़े-थोड़े समय बाद छह बार रेपो दर में बढ़ोतरी की गई और वह ढाई फीसद तक बढ़ गई। इससे आंकड़ों में महंगाई पर अंकुश तो लगता दिखा, पर लोगों पर किस्तों का बोझ भी बढ़ गया। लंबे समय से अपेक्षा की जा रही है कि रिजर्व बैंक रेपो दर में कुछ कटौती करेगा, ताकि व्यवसायियों और नौकरी-पेशा लोगों को मकान, दुकान, वाहन आदि के कर्ज का बोझ कुछ कम हो। मगर रिजर्व बैंक फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है।

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जहां तक महंगाई पर काबू पाने का सवाल है, आंकड़ों में जरूर इसे कुछ काबू में दिखाया जाता है, मगर धरातल पर यह लगातार आम आदमी की जेब पर बोझ डाल रही है। खाने-पीने की वस्तुओं के दाम लोगों की पहुंच से दूर होते जा रहे हैं। अनाज, दालों, दूध-घी, खाद्य तेलों, फल-सब्जियों की कीमतें उन दिनों में भी घटती नजर नहीं आतीं, जब बाजार में उनकी आवक तेज होती है।

शुरू हो रहा त्योहारों का मौसम

त्योहारों का मौसम शुरू हो चुका है। इन दिनों बाजार में रौनक रहती है, कारोबारियों को कमाई की उम्मीद होती है, मगर महंगाई की मार का असर उस पर दिखता है। फिर, थोक महंगाई और खुदरा महंगाई के बीच कोई तार्किक अंतर नजर नहीं आता। ऐसे में केवल रेपो दर को यथावत बनाए रख कर रिजर्व बैंक महंगाई को काबू में रखने की अपनी कोशिशों में कितना कामयाब होगा, दावा नहीं किया जा सकता।