भारतीय रिजर्व बैंक ने बाजार अनुमानों के मुताबिक रेपो दर में पच्चीस आधार अंक की कटौती कर दी है। करीब पांच वर्षों तक रेपो दर में कोई कटौती नहीं की गई थी। फरवरी में पच्चीस आधार अंक की कटौती की गई थी। यह दूसरी कटौती है। इससे बाजार में पूंजी का प्रवाह बढ़ने और भवन, वाहन, कारोबार आदि के लिए कर्ज लेने वालों पर ब्याज का बोझ कम होने का रास्ता आसान हो गया है। रिजर्व बैंक यह फैसला इसलिए कर पाया कि इस वक्त अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें काफी नीचे आ गई हैं, गेहूं और दालों का अच्छा उत्पादन हुआ है, खुदरा महंगाई का रुख नीचे की तरफ है।

आगे भी महंगाई के नीचे रहने का अनुमान है। रिजर्व बैंक ने महंगाई चार फीसद पर रहने का अनुमान लगाया है। रिजर्व बैंक का लक्ष्य भी यही था कि महंगाई को चार फीसद के आसपास रखा जा सके। इसलिए अब उसने अपना ध्यान विकास दर पर केंद्रित कर दिया है। फिलहाल विकास दर साढ़े छह फीसद पर रहने का अनुमान है। जिस तरह अमेरिकी शुल्क नीति के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितताओं के दौर से गुजर रही है, उसमें भारत के लिए अपना सकल घरेलू उत्पाद बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी हो गया है।

रेपो दर कम होने से ब्याज दरों में आती है कमी

इस वक्त अच्छी बात है कि विनिर्माण क्षेत्र में सुधार नजर आ रहा है, जो चिंताजनक स्तर तक गोते लगा चुका था। विनिर्माण क्षेत्र के कमजोर होने का असर सकल घरेलू उत्पाद पर पड़ता है। यह क्षेत्र इसलिए कमजोर पड़ा हुआ था कि महंगाई आम लोगों की सहनशक्ति से ऊपर चली गई थी और उन्होंने अपने दैनिक उपभोग में कटौती करनी शुरू कर दी थी। अब महंगाई घटी है, तो स्वाभाविक रूप से उपभोग का स्तर उठेगा, जिससे विनिर्माण क्षेत्र को बल मिलेगा।

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रेपो दर कम होने से ब्याज दरों में कमी आती है। इसका लाभ कर्ज लेने वालों को तो मिलता है, पर बचत खाते आदि में पैसा जमा कराने वालों को नुकसान होता है। हालांकि जिन लोगों के पास पूंजी अधिक है, वे लंबी अवधि की योजनाओं में जमा कर अधिक ब्याज का लाभ ले सकते हैं। सबसे अधिक राहत वाहन, भवन, कारोबार आदि के लिए कर्ज लेने वालों को महसूस होती है, पर बैंक चूंकि लंबे समय से कारोबारी शिथिलता से जूझ रहे हैं, वे रेपो दर में पच्चीस आधार की कटौती का लाभ तुरंत अपने ग्राहकों को देना शुरू कर देंगे, कहना मुश्किल है।

विश्व बाजार में बनी हुई है अनिश्चितता

इस वक्त जिस तरह विश्व बाजार में अनिश्चितता बनी हुई है, निर्यात में और कमी आने की चिंता बढ़ गई है। पहले ही निर्यात के मामले में संतोषजनक वृद्धि नहीं हो पा रही थी, कई देशों के साथ व्यापार घाटा चिंताजनक दर से बढ़ रहा था, उसमें घरेलू बाजार को मजबूत करने पर बल देना होगा। रिजर्व बैंक का कहना है कि बाजार में अतिरिक्त पूंजी प्रवाह बढ़ाया जाएगा, इससे विनिर्माण क्षेत्र को बल मिलेगा, मगर खपत बढ़ाना फिर भी बड़ी चुनौती रहेगी।

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ऐसे में, रेपो दर में कटौती का लाभ इस बात पर निर्भर करेगा कि घरेलू बाजार को मजबूत करने पर कितना जोर दिया जा रहा है। जब बेरोजगारी की दर पर काबू पाने और प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी के साधन विकसित नहीं हो पा रहे हैं, तो उसमें केवल रेपो दर में कटौती से आर्थिक बेहतरी का दावा करना मुश्किल ही बना रहेगा।