इससे संवेदनात्मक धरातल पर सामाजिक कड़ियां मजबूत होती हैं और भावी पीढ़ियों के भीतर मानवीय मूल्यों का जरूरी विकास होता है। लेकिन इसके बरक्स एक कड़वी हकीकत यह भी है कि सामाजिक व्यवहार के इसी पहलू को ढाल बना कर कुछ ऐसी अवांछित हरकतें भी की जाती रही हैं, जिसे बच्चों के शोषण के दायरे में भी देखा जाता है।

यही वजह है कि जब तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा और एक बच्चे का वीडियो सुर्खियों में आया तो वह किसी को भी अच्छा नहीं लगा। बल्कि वीडियो में जिस तरह दलाई लामा एक बच्चे से प्यार जताने के क्रम में अवांछित तरीके से अतिरिक्त आग्रह करते दिखे, उस पर एक बड़े दायरे में तीखी नकारात्मक प्रतिक्रिया हुई।

खबरों के मुताबिक यह घटना करीब डेढ़ महीने पहले की है। उसका वीडियो अब प्रचारित हुआ। लेकिन इसमें जिस तरह की हरकत दिखी, उसे बच्चे के साथ किया शालीन व्यवहार नहीं कहा जा सकता। यही वजह है कि सुर्खियों में आने और इस मामले के तूल पकड़ने के बाद दलाई लामा की ओर से सोशल मीडिया के जरिए माफी मांग ली गई।

यह संभव है कि दलाई लामा ने उस बच्चे से जो भी कहा, उनके मुताबिक, उसके पीछे कोई बुरी मंशा नहीं रही हो। लेकिन इस क्रम में जो किया गया, उसे एक सामान्य अभिव्यक्ति कहना मुश्किल है। यों दलाई लामा इससे पहले भी अपने कुछ बयानों की वजह से विवाद में रह चुके हैं। मसलन, एक समय उन्होंने अपनी उत्तराधिकारी किसी महिला के होने के सवाल के जवाब में कहा था कि उस महिला को आकर्षक होना पड़ेगा।

इस तरह की बातों या हरकतों पर तभी अफसोस या माफी मांगी जाती है, जब व्यापक पैमाने पर इस पर आपत्ति सामने आए। किसी जानी-मानी हस्ती या धर्मगुरु जैसे पद-कद वाले व्यक्ति के सार्वजनिक रूप से ऐसे विचित्र व्यवहारों के पीछे कोई तर्क ढूंढ़ना मुश्किल है। सवाल है कि किसी बच्चे के साथ उनके किस बर्ताव को निश्छल प्रेम की अभिव्यक्ति माना जाए!

दिखने में संवेदनात्मक व्यवहार के पीछे की मंशा को समझ पाना कई बार परिपक्व समझ वाले लोगों के लिए भी मुश्किल होता है। खासतौर पर कोई बड़े कद-पद वाला व्यक्ति हो तो मासूम बच्चे उसके व्यक्तित्व की आभा के बोझ से पहले ही मानसिक रूप से दबे होते हैं, इसलिए कई बार वे खुद को अप्रिय लगने के बावजूद मना नहीं कर पाते या फिर जरूरी प्रतिरोध नहीं जता पाते।

यह छिपा नहीं है कि बाल यौन दुर्व्यवहार या उनके शोषण के अनेक जटिल रूप रहे हैं। विडंबना यह है कि बच्चों की मासूमियत का फायदा उठा कर उनके साथ कई बार ऐसी गलत हरकतें की जाती हैं, जिनके पीछे छिपी मंशा को बच्चे नहीं समझ पाते हैं। जहां तक धर्मगुरुओं का सवाल है तो किसी खास मत या पंथ के अनुयायियों के भीतर अपने गुरुओं के प्रति जो आस्था होती है, उसे ही मनोवैज्ञानिक दबाव का हथियार बना लिया जाता है।

यही वजह है कि कई बार लोग अवांछित हरकतों पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाते। अक्सर ऐसी खबरें आती रही हैं, जिनमें कुछ गिरजाघरों में पादरियों या अन्य लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर बच्चों के यौन शोषण के बारे में बताया जाता है। ऐसी स्थिति में दलाई लामा का व्यवहार अगर निर्दोष है, तो भी ऐसे अशालीन बर्ताव से बचने की जरूरत है, क्योंकि इसके असर का आकलन इस आधार पर होगा कि आम लोगों के बीच ऐसे व्यवहार को किस रूप में देखा, समझा और बरता जाएगा!