दुनिया भर में भारत को विविधताओं से भरी सांस्कृतिक छवियों वाले एक ऐसे देश के रूप में देखा-जाना जाता है, जहां अलग-अलग धर्मों के लोग आपसी सद्भाव के साथ रहते और एक-दूसरे के त्योहारों में शामिल होते आए हैं। मगर हाल के वर्षों में कुछ खास त्योहारों के ठीक पहले जिस तरह द्वेष का माहौल पैदा करने की कोशिश की जाने लगी है, वह न केवल देश में सौहार्द को नुकसान पहुंचाने की कोशिश है, बल्कि मानवीय तकाजों के भी विरुद्ध है।
क्रिसमस को ईसाई धर्म से जुड़े लोगों का त्योहार माना जाता है, लेकिन इसमें आमतौर पर देश में सभी धर्मों के लोग उत्साह के साथ शामिल होते रहे हैं। विडंबना यह है कि अब कुछ असामाजिक तत्त्व क्रिसमस के मौके पर देश के ईसाई समुदाय के लोगों को निशाना बनाने लगे हैं और इसका सीधा नुकसान देश की छवि को हो रहा है। गौरतलब है कि इस वर्ष फिर क्रिसमस के मौके पर छत्तीसगढ़ और असम सहित कुछ राज्यों में ईसाई समुदाय के प्रार्थना स्थलों और अन्य जगहों पर दक्षिणपंथी समूहों ने हमला किया और बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ मचाई।
क्रिसमस में माहौल बिगाड़ने की कोशिश, दिल्ली से लेकर MP-छत्तीसगढ़ तक जश्न के दौरान हुई तोड़फोड़
सवाल है कि वे कौन लोग हैं, जो सद्भाव के माहौल में नफरत घोलना चाहते हैं और उन्हें देश के अल्पसंख्यक या अन्य समुदायों के पर्व-त्योहार से परेशानी होने लगी है। क्या मानवीयता के मूल्यों को अपनी आस्था का सबसे अहम पक्ष मानने वाला कोई भी व्यक्ति किसी अन्य समुदाय के त्योहार से इस कदर दुश्मनी रख सकता है?
सद्भाव या सौहार्द के साथ किसी धार्मिक उत्सव को मनाए जाने से किसे दिक्कत हो सकती है? केवल निराधार आरोपों का हवाला देकर किसी ऐसे त्योहार पर अराजकता फैलाने का क्या मकसद हो सकता है, जिसमें देश के सभी धर्मों के लोग या तो सहज रहते हैं या फिर उसमें शामिल होते हैं?
कथित धर्म परिवर्तन के आरोप अगर लगाए भी जाते हैं, तो इस मसले पर सरकार और प्रशासन अपना काम करेंगे या कुछ अराजक और असामाजिक तत्त्वों को अपनी ओर से हिंसा करने की छूट मिल जाती है? किसी समुदाय के भीतर डर पैदा करके किस तरह से धर्म की सेवा की जा सकती है?
यह ध्यान रखने की जरूरत है कि किसी भी बहाने से अन्य धार्मिक समूहों के खिलाफ हिंसा करना या तोड़फोड़ मचाना वास्तव में अपने ही देश की सांस्कृतिक छवि को नकारात्मक बनाना है। अगर इस तरह की प्रवृत्तियों को तुरंत नहीं रोका गया, तो इससे आपसी सद्भाव का माहौल बिगड़ने की आशंका पैदा होगी।
इतना तय है कि देश के संविधान का सम्मान करने वाली सरकारें और ज्यादातर संवेदनशील लोग धर्म के नाम पर टकराव तथा तनाव पैदा करने की कोशिशों का समर्थन नहीं करते। यही वजह है कि कई जगहों पर क्रिसमस पर उत्पात मचाने वालों के खिलाफ पुलिस ने मामला दर्ज किया।
यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि किसी भी पर्व-त्योहार के मौके पर सांप्रदायिकता फैलाने वाले तत्त्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। विचित्र यह भी है कि क्रिसमस के मौके पर एक ओर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ईसाई समुदाय के साथ मेलजोल, शांति और सद्भाव का संदेश दे रहे थे, तो दूसरी ओर कुछ असामाजिक तत्त्व तोड़फोड़ और अराजकता फैलाने में लगे थे।
देश में सभी धर्मों के पर्व-त्योहारों के अवसर पर सौहार्द तथा सद्भाव की जो परंपरा रही है, उसे बचाने और मजबूत करने के लिए सरकार और समाज को एक बार फिर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
