सामाजिक जीवन में उत्सव एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इसलिए यह स्वाभाविक है कि पर्व-त्योहारों पर लोग किसी जगह जमा हों और आस्था की अभिव्यक्ति या फिर सामूहिक बोध का प्रदर्शन करें। मगर इस क्रम में ऐसे पर्व मनाने के लिए किए गए आयोजनों में जिस तरह बार-बार हादसे सामने आ रहे हैं, वे अपने आप में एक बड़ा सवाल है कि क्या अब इस तरह लोगों का जुटना जानलेवा भी हो रहा है।
उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बड़ौत में जैन समुदाय की ओर से भगवान आदिनाथ के निर्वाण लड्डू पर्व का आयोजन किया गया था। वहां मंगलवार को मानस्तंभ परिसर में बना लकड़ी का ढांचा गिरने से कई लोगों की जान चली गई और चालीस से ज्यादा लोग घायल हो गए। दरअसल, आयोजन स्थल पर पैंसठ फुट ऊंचा एक अस्थायी मंच बनाया गया था, लेकिन उस पर लोगों की संख्या को सीमित रखने या वहां पहुंचने को लेकर लापरवाही बरती गई। उसकी सीढ़ियों और मंच पर लोगों की भीड़ इस कदर बढ़ गई कि वह ढह गया और उसके नीचे लोग दब गए।
आयोजकों को नहीं था क्षमता का अंदाजा
इस घटना से एक बार फिर यही साफ होता है कि धार्मिक आयोजनों में पिछले बड़े हादसों से सबक लेने की कोई जरूरत नहीं समझी गई। अगर आयोजकों और प्रशासन को यह अनुमान था कि इस आयोजन में कितने लोग आएंगे और वहां कैसे इंतजाम किए जाने की जरूरत है, तो उसी मुताबिक सावधानी क्यों नहीं बरती गई?
भारत-इंडोनेशिया के बीच संबंध पुराना, दोनों देशों का एक दूसरे के प्रति सहयोग का नया सफर
जिस सामग्री से अस्थायी मंच और सीढ़ियां बनाई गई थीं, उनकी क्षमता के बारे में क्या आयोजकों और प्रशासन को अंदाजा नहीं था? अगर ये तथ्य स्पष्ट थे, तो पैंसठ फुट ऊपर मंच के रास्ते पर लोगों को संख्या को सीमित क्यों नहीं किया गया? जाहिर है कि यह एक बार फिर इस तरह के धार्मिक आयोजन में भीड़ प्रबंधन और अन्य स्तर पर किए जाने वाले सुरक्षा बंदोबस्त के तकाजों की अनदेखी का ही उदाहरण है।
सुरक्षा सुनिश्चित होने के बाद ही मिले आयोजन की इजाजत
बागपत की घटना एक और सबक है, जिसके बाद जहां भी ज्यादा संख्या में लोगों के जमा होने की संभावना हो, वहां प्रशासन सभी स्तर पर पूरी तरह सुरक्षा और बचाव के पूर्व इंतजाम सुनिश्चित करने के बाद ही आयोजन की इजाजत दे।