हाथरस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने सीबीआइ जांच की सिफारिश भले कर दी हो, लेकिन हर मामले में उसने जिस तरह का रवैया अपनाया, उससे उसकी फजीहत बढ़ती जा रही है। वह एक के बाद एक नासमझी भरे फैसले करती रही। पहले तो पुलिस ने पीड़िता की रिपोर्ट लिखने में देर की, फिर उसकी जांच में करीब हफ्ता भर विलंब हुआ। जब उसकी हालत बिगड़ी और उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया और अंतत: उसने दम तोड़ दिया, तो चुपके से उसकी लाश को जला दिया गया। फिर पीड़िता के गांव को छावनी में तब्दील कर दिया गया। वहां मीडिया को भी नहीं जाने दिया गया।
कुछ दलित नेताओं को उनके घर में नजरबंद कर दिया गया। किसी भी राजनीतिक दल के नेता को पीड़िता के परिजनों से मिल कर संवेदना तक व्यक्त नहीं करने दिया गया। एक दिन राहुल और प्रियंका गांधी हाथरस पहुंचने का प्रयास करते रहे, पर उन्हें उत्तर प्रदेश की सीमा पर ही रोक दिया गया। यह अलग बात है कि दूसरी बार जब वे गए तो उन्हें पीड़ित परिवार से मिलने दिया गया। पर सरकार के इस तरह के रुख से यही जाहिर होता है कि कुछ तो है जिसे वह छिपाना चाहती है। आखिर विपक्षी दलों को इस तरह रोक कर उसने उन्हें सुर्खी बटोरने का ही मौका दिया।
उत्तर प्रदेश सरकार को डर सताता रहा कि अगर राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों और मीडिया को हाथरस में पीड़ित परिवार से मिलने दिया गया तो बड़ा आंदोलन खड़ा हो सकता है। दरअसल, शुरू में ही जिस तरह भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर ने इस घटना को लेकर आंदोलन छेड़ दिया, उससे सरकार की घबराहट बढ़ गई। उसी के चलते शायद एक के बाद एक प्रशासन गलत कदम उठाता रहा।
हाथरस के जिलाधिकारी का एक वीडियो सामने आया, जिसमें वे लड़की के परिजनों पर दबाव बनाते सुने गए। फिर बताया गया कि लड़की के साथ बलात्कार हुआ ही नहीं था। अगर सरकार सचमुच लड़की को इंसाफ दिलाने और अपराधियों पर नकेल कसने को लेकर गंभीर होती तो, इस तरह पुलिस का घेरा बना कर लोगों की आवाज दबाने का प्रयास करने के बजाय असलियत उजागर करती। मगर इस वक्त उसका सारा जोर विपक्ष से निपटने पर केंद्रित दिखाई दे रहा है। वह यह भी भूल गई है कि लोकतंत्र में विपक्षी राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों को असहमति व्यक्त करने का अधिकार होता है। उन्हें इस तरह सशस्त्र बलों के जरिए रोकना एक तरह से लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अनेक मौकों पर दावा कर चुके हैं कि राज्य में अपराधियों की कोई जगह नहीं होगी। महिलाओं की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाएंगे। मगर हकीकत यह है कि उत्तर प्रदेश में बलात्कार की घटनाएं लगातार बढ़ती गई हैं। शायद ही कोई महीना गुजरता हो, जिसमें कहीं कोई बलात्कार की घटना न घटती हो। इनमें से ज्यादातर में पीड़िता की हत्या कर दी जाती है।
अपराधी ऐसा इसलिए करते हैं कि उनके खिलाफ कोई सबूत न बचे। हाथरस मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस ने भी वही किया। आखिर ऐसा क्या था कि उसने लाश परिजनों को सौंपने के बजाय खुद जैसे-तैसे रात के अंधेरे में दाह संस्कार कर दिया। ऐसा तो आज तक कहीं किसी पुलिस ने नहीं किया। आखिर ऐसा क्या है, जिस पर सरकार परदा डालना चाहती है! ऐसा करके तो उसने अपनी प्रशासनिक अयोग्यता और राजनीतिक नासमझी का ही परिचय दिया है।
