पिछले दिनों अर्थव्यवस्था के लिहाज से सकारात्मक खबरों के बीच अब भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआइ की ओर से नीतिगत दरों में कमी से यही संकेत उभरता है कि महंगाई अब नियंत्रण में है और आर्थिक मोर्चे पर खड़ी चुनौतियों से पार पाने में देश आगे की राह पर है। आरबीआइ ने शुक्रवार को प्रमुख नीतिगत दर यानी रेपो दर में 0.5 फीसद की कमी करके उसे 5.5 फीसद कर दिया। इसे उम्मीद से ज्यादा की कमी माना जा रहा है।

इसके अलावा, एक चौंकाने वाले फैसले के तहत आरबीआइ ने बैंकों के लिए भी नकद आरक्षित अनुपात यानी सीआरआर में भी एक फीसद की कटौती की घोषणा की। यह लगातार तीसरी बार है, जब केंद्रीय बैंक ने रेपो दर में कटौती की है। इससे पहले आरबीआइ ने इसी वर्ष फरवरी और अप्रैल में पच्चीस आधार अंकों की कटौती की थी। जाहिर है, यह न केवल देश के भीतर आर्थिक उतार-चढ़ाव से निपटने की कोशिश है, बल्कि फिलहाल दुनिया भर में जैसी चुनौतियां खड़ी हो रही हैं, उसमें इन उपायों से अर्थव्यवस्था को संभालने में भी मदद मिलेगी।

रेपो दरों में कमी को मुख्य रूप से ऋण के लिहाज से सुविधाजनक माना जाता रहा है

दरअसल, रेपो दरों में कमी को मुख्य रूप से ऋण के लिहाज से सुविधाजनक माना जाता रहा है। कर्ज सस्ता या महंगा होने का हिसाब इसी पर टिका होता है और इसका सीधा और पहला असर उन उपभोक्ताओं पर पड़ता है, जिन्होंने घर, वाहन, अन्य सामान या फिर शिक्षा जैसी जरूरतों के लिए बैंकों से ऋण लिया होता है या फिर वे लोग, जो इस बात का इंतजार करते हैं कि रिजर्व बैंक की ओर से कब नीतिगत दरों में कमी की जाए और कर्ज सस्ता होने के बाद वे कुछ खरीदने या निवेश करने की योजना बनाएं।

गौरतलब है कि रिजर्व बैंक की नीतिगत दरों के अनुरूप ही व्यावसायिक बैंक उपभोक्ताओं को दिए जाने वाले ऋण और अन्य सावधि जमा के मद में ब्याज की दरें निर्धारित करते हैं। इसलिए उम्मीद है कि रेपो दरों में कमी के बाद व्यावसायिक बैंक भी कर्ज की दरें घटाएंगे। इसके बाद स्वाभाविक रूप से कर्ज सस्ता होगा और मासिक किस्तों में कमी की वजह से बैंकों से ऋण लेने वाले उपभोक्ताओं की मांग बढ़ सकती है।

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साथ ही, पिछले कुछ समय से वाहन बाजार और खासतौर पर जमीन-जायदाद के कारोबार में जिस तरह की मंदी की आशंका जताई जा रही थी, नीतिगत दरों में कटौती के बाद उसमें सुधार आने की उम्मीद की जा सकती है। इस लिहाज से देखें तो रिजर्व बैंक की ओर से नीतिगत दरों में बड़ी कमी की जो घोषणा की है, वह एक तरह से अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की दिशा में एक अहम कदम है। मगर जरूरत इस बात की है कि इस तरह के फैसले सिर्फ घोषणाओं और अर्थव्यवस्था के जटिल गणित तक ही न सिमटे रहें।

इसका असर जब तक जमीन पर नहीं दिखेगा, आम लोगों को इसका सीधा फायदा नहीं मिलेगा, वे अपनी जरूरत के लिए घर या कोई अन्य चीज की खरीदारी को लेकर सहज और निर्द्वंद्व नहीं होंगे, तब तक इस तरह के फैसले अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को दूर करने में सहायक साबित नहीं हो सकते। महंगाई से राहत और क्रय शक्ति की सीमा में खरीदारी में सहजता से यह तय होगा कि रेपो दरों में कमी का लाभ आम लोगों तक कितना पहुंच पाता है।

ऋण लेने का उत्साह उसे चुकाने की स्थितियों पर टिका रह सकता है। इसलिए रोजगार और आय के अन्य माध्यमों की बुनियाद मजबूत करने की स्थिति पैदा करनी होगी, ताकि लोग अपने निवेश और अन्य आर्थिक फैसलों को लेकर सुरक्षित महसूस करें।