वे देश के शीर्ष उद्योगपतियों में से एक होने के साथ-साथ संवेदनशील और परोपकारी इंसान भी थे। उन्होंने असफलता के दौर से गुजर कर सफलता के कई नए अध्याय लिखे और अपनी विलक्षण दूरदृष्टि से टाटा समूह के कारोबार को सहेजा और आगे बढ़ाया। उद्योग जगत के एक पुरोधा के समांतर एक संवेदनशील इंसान के रूप में भी अपनी पहचान बनाने वाले रतन टाटा कारोबार की नब्ज पहचानते थे। उन्हें एक मायने में स्वप्नद्रष्टा कारोबारी माना जा सकता है। उनके पास कई सपने थे और जब वे उन्हें साकार करने की कोशिश में जुट जाते, तो फिर पीछे नहीं हटते थे।

दरअसल, वे नाकामियों से हार मानने वाले व्यक्ति नहीं थे। उन्होंने नफा-नुकसान की परवाह किए बिना खामोशी से अपना काम किया। एक लाख रुपए वाली नैनो कार उन सपनों में से है, जिसके तहत उनकी इच्छा थी कि निम्न आय वर्ग के पास भी अपनी कार हो। उन्होंने विमानन कंपनी एअर इंडिया को नए पंख दिए।

इसके अलावा, सूचना क्रांति सहित रतन टाटा की अन्य पहलकदमियों ने मध्यवर्ग से लेकर गरीब तबकों के सपनों में रंग भरे। उन्होंने ‘बोर्ड रूम’ की बैठकों से आगे निकल कर मानवीय मूल्यों को लेकर प्रतिबद्धता और अपनी विनम्रता से एक गहरी छाप छोड़ी। उनकी नेकदिली और सादगी सभी का ध्यान आकृष्ट करती थी।

22 साल तक टाटा ग्रुप के थे अध्यक्ष

पूर्वजों से मिली विरासत को उन्होंने एक नई ऊंचाई दी। रतन टाटा ने मार्च 1991 से लेकर दिसंबर 2012 तक टाटा समूह की अगुआई की। उन्होंने जेआरडी टाटा के अवकाश ग्रहण के बाद समूह के अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली थी। इस पद पर वे बाईस साल तक रहे और अपने कुशल नेतृत्व में उन्होंने पूरी दुनिया में टाटा समूह का कारोबार फैलाया।

संपादकीय: जवान की अगवा कर हत्या, आतंकियों की कायराना हरकत दिखा रही उनकी हताशा

आज विश्व के सौ देशों में समूह का कारोबार फैला है तो इसके पीछे उनका ईमानदार नेतृत्व, व्यावसायिक दूरदर्शिता और सूझबूझ है। वे अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा दान करते रहे। जो समाज से लिया, उसे लौटाने में उनका विश्वास था। चर्चा और चकाचौंध से दूर रहने वाले रतन टाटा को यश और दौलत का कभी गुमान नहीं रहा। उनकी सादगी के अनेक किस्से मशहूर हैं और उन्हें वक्त की पाबंदी के लिए भी जाना जाता है। अपनी सहजता-सरलता और जीवन मूल्यों के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे।