पिछले कुछ वर्षों में भारत और अमेरिका के रिश्ते काफी मजबूत हुए हैं। खासकर रक्षा मामलों में भारत का रुख अमेरिका की तरफ अधिक केंद्रित होता गया है। आपूर्ति सुरक्षा व्यवस्था यानी एसओएसए पर समझौता उसी की एक कड़ी है। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने भारत के लिए 443 करोड़ के रक्षा उपकरणों की आपूर्ति को मंजूरी दे दी है। यह समझौता भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की अमेरिका यात्रा के दौरान हुआ। इसमें दोनों देशों ने तकनीकी हस्तांतरण और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सैन्य सहयोग बढ़ाने जैसे कई अन्य पहलुओं पर भी चर्चा की।
इस समझौते से शांतिकाल, आपात स्थितियों और सशस्त्र संघर्षों में आपूर्ति शृंखला मजबूत होगी। इससे दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधी उत्पादों के अधिग्रहण में आसानी होगी। माना जा रहा है कि इससे रक्षा क्षेत्र में भारतीय और अमेरिकी कंपनियों के बीच निवेश और साझेदारी के नए रास्ते खुलेंगे। भारत अब उन घरेलू कंपनियों की सूची तैयार करेगा, जो अमेरिका को सैन्य उपकरणों की आपूर्ति करने के लिए हर संभव प्रयास करने के लिए स्वेच्छा से आगे आएंगी। इससे आने वाले वर्षों में भारतीय कंपनियों के लिए महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक अवसर मिलने की उम्मीद है।
भारतीय सेना लंबे समय से अत्याधुनिक उपकरणों की कमी की शिकायत करती रही है। इसके मद्देनजर पिछले कुछ वर्षों में लड़ाकू विमानों, पनडुब्बियों, मिसाइलरोधी उपकरणों आदि की खरीद करके सेना को मजबूत बनाने का प्रयास हुआ है। मगर बदलती जरूरतों के मुताबिक अभी सेना को और सशक्त बनाने की जरूरत महसूस की जाती है। हालांकि भारत को सबसे अधिक खतरा चीन से रहता है। पिछले कुछ वर्षों से चीन जिस तरह भारत को धमकाने और चालाकी से थल और जल क्षेत्र में अतिक्रमण करने का प्रयास करता देखा जाता है, इसके चलते दोनों देशों के बीच अक्सर तनाव की स्थिति बनी रहती है, उसमें जमीन और आसमान से मार करने वाले अत्याधुनिक हथियारों के अलावा समुद्र में प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत बनाने की जरूरत पर सदा से बल दिया जाता रहा है।
हिंद-प्रशांत महासागर में बढ़ेगी सुरक्षा
अमेरिका के साथ हुए ताजा समझौते में हिंद-प्रशांत में सुरक्षा बढ़ाने पर अधिक जोर है। इस सौदे में खरीदी जाने वाली पनडुब्बियां भारतीय सेना के लिए काफी मददगार साबित होंगी। अमेरिका के साथ रक्षा आपूर्ति व्यवस्था संबंधी समझौते का बड़ा लाभ यह होगा कि विषम परिस्थितियों में भी अमेरिका भारत को रक्षा सहयोग देने से इनकार नहीं कर सकेगा। हालांकि बदलती वैश्विक स्थितियों में किसी भी देश के साथ लंबे समय तक सकारात्मक संबंधों का भरोसा नहीं दिलाया जा सकता।
रक्षा क्षेत्र में सौदा मजबूत अर्थव्यवस्था का बड़ा आधार
रक्षा क्षेत्र में भारत का बल आत्मनिर्भर बनने पर है। इसके लिए अनेक सफल प्रयास भी हुए हैं। लड़ाकू विमानों से लेकर पनडुब्बियों तक के निर्माण में सफलता मिली है। हल्के हथियारों के मामले में दूसरे देशों पर निर्भर रहने के बजाय स्वदेशी तकनीक से उन्हें विकसित करने में काफी हद तक कामयाबी हासिल हुई है। रक्षा उपकरणों के उत्पादन में अनेक निजी कंपनियों के लिए भी रास्ता खोल दिया गया है। दरअसल, अब रक्षा उपकरणों का निर्माण केवल आंतरिक जरूरतों का मामला नहीं रह गया है। यह अर्थव्यवस्था की मजबूती का भी बड़ा आधार बन चुका है। ऐसे में अमेरिका के साथ हुए समझौते से भारत के लिए यह अवसर बनेगा कि वह निजी कंपनियों को अमेरिका के लिए आपूर्ति किए जा सकने वाले रक्षा उपकरणों के उत्पादन को प्रोत्साहित करे। इससे दूसरे देशों को रक्षा सामग्री की आपूर्ति का बाजार भी खुलेगा।