तमाम दावों और मंसूबों के बावजूद भारतीय रेल में विभिन्न सेवाओं से संबंधित शिकायतों का सिलसिला खत्म ही नहीं होता। रेलगाड़ियों में परोसे जाने वाले भोजन की गुणवत्ता, स्वच्छता और शुद्धता को लेकर लंबे समय से शिकायतें मिलती रही हैं। उन्हें दूर करने के मकसद से भारतील रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम यानी आइआरसीटीसी का गठन किया गया। इसके लिए क्षेत्रीय स्तर पर रसोई बनाई गईं, वहां तैयार होने वाले खानपान के निरीक्षण का तंत्र विकसित किया गया। इससे बाहरी खानपान की गुणवत्ता और कीमतों में मनमानी पर कुछ हद तक रोक तो लगी, स्वच्छता और साफ-सफाई पर भी ध्यान दिया जाने लगा, मगर फिर वही शिकायतें मिलनी शुरू हो गईं। संसद की एक समिति ने इसे लेकर रेलवे की खिंचाई की है।
आइआरसीटीसी को छह हरित रसोई भी बनानी थी, मगर काम नहीं हो सका
समिति का कहना है कि खानपान संबंधी नीतियों में बार-बार बदलाव की वजह से भी यह गड़बड़ी हो रही है। संसदीय समिति ने इस बात के लिए भी रेलवे पर नाराजगी जाहिर की कि उसके पहले के सुझावों पर अमल क्यों नहीं किया गया। समिति ने रेलवे से जवाब मांगा है कि जिन पंद्रह खानपान इकाइयों को अपडेट करने को कहा गया था, वह क्यों नहीं हुआ। आइआरसीटीसी को छह हरित रसोई भी बनानी थी, मगर उस दिशा में काम नहीं हो सका।
2017 में नई खानपान नीति बनाई गई थी, उसकी समीक्षा के लिए बनी समिति
दरअसल, 2005 के बाद से अब तक तीन बार रेलवे खानपान संबंधी नीतियों में बदलाव किया जा चुका है। 2010 में यह काम क्षेत्रीय रेलवे को सौंप दिया गया था, फिर 2017 में इसे आइआरटीसी को दे दिया गया। इस तरह नीतिगत गड़बड़ियों के चलते भी रेल खानपान सेवा को लेकर एक प्रकार की अनिश्चितता बनी रही और गुणवत्ता से समझौता होता रहा। 2017 में नई खानपान नीति बनी और उसकी समीक्षा के लिए संसदीय समिति गठित की गई, तब उसने कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए थे। मगर समिति की ताजा रपट से जाहिर है कि पिछले सात वर्षों में इस दिशा में कोई उल्लेखनीय कदम नहीं उठाए जा सके हैं।
दरअसल, अभी तक रेलों में परोसा जाने वाला भोजन बाहर की रसोई में तैयार होकर पहुंचाया जाता है, फिर गाड़ियों में उसे गरम करने की व्यवस्था होती है। मगर देखा गया कि वैसे रेल डिब्बे बने ही नहीं हैं। जाहिर है, इस तरह तैयार होने और परोसे जाने के बीच समय अधिक गुजर जाने से अक्सर भोजन खराब हो जाता है।
संसदीय समिति ने इस बात पर भी हैरानी जताई है कि भोजन की गुणवत्ता के निरीक्षण के लिए तो तंत्र गठित है, पर औचक निरीक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। इससे रसोइयों में भोजन तैयार करने और रेल डिब्बों में परोसे जाने में अक्सर मनमानी की शिकायतें आती रहती हैं। सरकार रेल सेवाओं को विश्व मानकों के अनुरूप ढालने और द्रुतगामी रेलों की संख्या बढ़ाने के दावे तो बढ़-चढ़ कर करती है, रेल किराए में भी काफी बढ़ोतरी हो चुकी है, मगर जब खानपान की गुणवत्ता और स्वच्छता पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जा पाता, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि दूसरी सुविधाओं पर कितना ध्यान दिया जाता होगा।
अक्सर रेल दुर्घटनाओं को लेकर सवाल उठते हैं, गाड़ियों के समय पर न चलने, रेल डिब्बों में सुरक्षा का उचित प्रबंध न होने जैसी शिकायतें आम हैं। इस स्थिति में द्रुतगामी गाड़ियां चला देने या स्टेशनों की देखरेख निजी कंपनियों के हाथों में सौंप देने भर से रेलवे की साख कितनी और कहां तक बची रह पाएगी।