पिछले कुछ समय से यह साफ देखा जा सकता है कि भारत आतंकवाद और विस्तारवाद की भूख के खिलाफ जो सवाल उठाता रहा है, उसे अनेक देशों में न सिर्फ विचार के लिए जरूरी समझा जाने लगा है, बल्कि अब उन पर स्पष्ट रुख भी जाहिर किया जा रहा है। हालांकि इस तरह के मुद्दों पर वैश्विक स्तर पर लंबे समय तक उदासीनता छाई रही, जिसका खमियाजा यह हुआ कि आतंकवादी संगठनों का हौसला बढ़ा और नाहक दूसरे देशों की सीमाओं में दखल देने वाले चीन जैसे देश को अपना रास्ता निर्बाध लगा।

लेकिन अब दुनिया में भारत के बढ़ते कद के साथ यह तस्वीर बदलने लगी है। गौरतलब है कि अमेरिकी सीनेट में एक द्विदलीय प्रस्ताव पेश किया गया है, जिसमें भारत की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति को बदलने की चीन की आक्रामकता का विरोध किया गया है। साथ ही अरुणाचल प्रदेश पर चीन के हर दावे को खारिज करते हुए इसे भारत के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता देने की स्पष्ट वकालत की गई है।

इस प्रस्ताव को अमेरिका में भारत के पक्ष को लेकर बन रही राय और स्पष्टता के तौर पर देखा जा सकता है, मगर यह भी सच है कि विश्व के प्रभावशाली देशों में अब हो रही ऐसी पहलकदमी के लिए भारत को लंबे समय तक दुनिया को आईना दिखाना पड़ा है। यह किसी से छिपा नहीं है कि पाकिस्तान स्थित ठिकानों से अपनी गतिविधियां संचालित करने वाले आतंकी संगठनों को लेकर भारत ने तथ्यों के साथ संयुक्त राष्ट्र सहित तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी बात रखी।

लेकिन तकनीकी जटिलताओं का हवाला देकर इस मामले में ज्यादातर देश कोई स्पष्ट रुख अख्तियार करने से बचते रहे। लेकिन एक महीने पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक समिति ने पाकिस्तान स्थित आतंकवादी और लश्कर-ए-तैयबा में अनेक भूमिकाएं निभाने वाले अब्दुल रहमान मक्की को वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया। इसकी मांग भारत काफी अरसे से कर रहा था।

अब चीन को लेकर अमेरिकी सीनेट में जो पहलकदमी हुई है, उसकी अहमियत को भी इस दृष्टिकोण से देखा जा सकता है कि एक ओर जहां भारत को कूटनीतिक मोर्चे पर दुनिया को अपने पक्ष को सही साबित करने में कामयाबी मिल रही है, वहीं खुद कुछ देशों को यह हकीकत समझ में आने लगी है कि चीन और पाकिस्तान की ओर से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किस तरह नाहक दखलअंदाजी की जाती रही है।

दरअसल, चीन के मसले पर अमेरिकी सीनेट में इस प्रस्ताव की खास अहमियत इसलिए भी है कि इसे वहां के दोनों विरोधी दलों यानी डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी के दो नेताओं की ओर से संयुक्त रूप से पेश किया गया है। यह वहां भारत को लेकर बन रही व्यापक सहमति का सूचक है। यह छिपा तथ्य नहीं है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति में छेड़छाड़ की मंशा से चीन आए दिन अपने सैन्य बलों के इस्तेमाल से लेकर विवादित क्षेत्रों में गांवों के निर्माण सहित उकसावे वाली कई तरह की कार्रवाइयां करता रहता है।

यही नहीं, अक्सर चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना क्षेत्र होने के दावे करता रहता है, जिससे उसकी आक्रामक और विस्तारवादी नीतियों की भूख का ही पता चलता है। अमेरिका में पेश प्रस्ताव में चीन की ऐसी हरकतों की साफ शब्दों में निंदा की गई है। यों भारत अपनी सीमाओं की रक्षा अपने स्तर पर करने में सक्षम है और हर मौके पर यह साबित भी हुआ है, लेकिन अब अगर अन्य बड़ी शक्तियों की ओर से भी चीन और पाकिस्तान को लेकर भारत के रुख को समर्थन मिल रहा है तो इसे वैश्विक स्तर पर सच का सामना की तरह देखा जा सकता है।