भारत और रूस के बीच संबंधों का सफर करीब आठ दशक पुराना रहा है और अब तक दोनों देशों ने हर मौके पर एक-दूसरे के लिए सहयोग के दरवाजे खुले रखे हैं। इस लिहाज से देखें, तो रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत की दो दिवसीय राजकीय यात्रा एक मजबूत बुनियाद पर खड़े भारत-रूस के संबंधों को नया आयाम देने की नई कड़ी है।
मगर पुतिन इस बार जिन परिस्थितियों में भारत आए और खुले मन से भारत की स्थिति को समझते हुए सहयोग को मजबूत करने के लिए साथ चलने पर सहमति जाहिर की, वह बेहद अहम है। यह छिपा नहीं है कि पिछले कुछ समय से अमेरिका की ओर से दंडात्मक शुल्क और प्रतिबंध लगाने की घोषणा से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक जटिल स्थिति पैदा हुई है। ऐसे में इसके असर के दायरे में आने वाले देशों के सामने अब नए विकल्प खोजने की चुनौती है। इसी क्रम में भारत और रूस शुक्रवार को दोनों देशों के बीच पहले से चली आ रही आर्थिक और व्यापारिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए एक पंचवर्षीय योजना पर सहमत हुए हैं।
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हालांकि दोनों देशों के बीच परस्पर और दीर्घकालिक हितों पर आधारित संबंधों के अलावा एक पारंपरिक मित्रता का सहयोग भी हमेशा रहा है। मगर अब नए सिरे से भी भारत और रूस के बीच कई मसलों पर सहमति बनी है। पुतिन के साथ बातचीत के बाद रक्षा, व्यापार, ऊर्जा और आर्थिक सहयोग जैसे अहम क्षेत्रों में साझेदारी को और मजबूत करने पर जोर दिया गया।
इसके अलावा, आप्रवासन, स्वास्थ्य तथा चिकित्सा शिक्षा, खाद्य सुरक्षा, खाद और समुद्री सहयोग से संबंधित कई अहम समझौते हुए हैं। यह उम्मीद भी जताई गई है कि वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ा कर सौ अरब अमेरिकी डॉलर तक ले जाया जाएगा। दुनिया भर में जिस तरह नवनिर्माण के लिए लोगों की जरूरत बढ़ी है, उसके मद्देनजर भी दो समझौते हुए हैं, जिसमें दोनों देशों में मानव श्रम की आवाजाही एक नई शक्ति और अवसर का वाहक बनेगी।
वहीं, रूस तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ईंधन की निर्बाध आपूर्ति जारी रखने के लिए तैयार है और वह ‘मेक इन इंडिया’ में भी सहयोग करेगा। साथ ही, ध्रुवीय जल में भारतीय नाविकों को प्रशिक्षित करने के लिए सहयोग, साजो-सामान के साथ-साथ हिंद महासागर के मार्ग पर भी जिस तरह बात आगे बढ़ने की संभावना है, वह सहयोग के नए आयाम तैयार कर सकता है।
भारत के लिए अपने व्यापार और निवेश के क्षेत्र में ज्यादा विविधता, संतुलन और स्थिरता लाना वक्त की जरूरत है। पिछले कुछ समय से अमेरिका की ओर से शुल्क नीति का सहारा लेकर जिस तरह के दबाव पैदा किए गए और शर्तें थोपने की कोशिश हुई, वह किसी देश की नीतियों को मनमाने तरीके से प्रभावित करने से कम नहीं था। हालांकि भारत ने एक तरह से अपना स्वतंत्र रास्ता ही चुना और पारंपरिक तौर पर मित्र रहे रूस के साथ संबंधों को लेकर किसी नई नीति पर चलने की जरूरत नहीं समझी।
अब पुतिन की यात्रा और कई बिंदुओं पर हुए समझौतों के बाद भारत और रूस के संबंधों में नई गति आएगी। दोनों पक्षों ने सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, व्यापार और संस्कृति के क्षेत्रों में सहयोग को प्राथमिकता देने का संकल्प लिया है। आने वाले समय में नई भू-राजनीतिक परिस्थितियां तैयार हो सकती हैं, लेकिन एक न्यायसंगत और बहुध्रुवीय दुनिया ही नई वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हो सकेगी। रूस और भारत का सहयोग इसमें बड़ी भूमिका निभा सकता है।
